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का० ७३, सू० १२४ ] द्वितीयो विवेकः
[ २१७ अथ नाटिकालक्षणातिदेशेन 'प्रकरणी' लक्षयति[सूत्र १२४]-एवं प्रकरणी किन्तु नेता प्रकरणोदितः ॥ [८] ७३ ॥
___ एवं नाटिकोक्त-चतुरंकत्वादिलक्षणानुसारेण 'प्रकरणी' ग्रथनीया। किन्तु नेता प्रकरणोक्तो वणिगादिः । तेन वणिगााचित एव वेष-संभोगादिः सर्वोऽप्यत्र व्यवहारः। त्यपि तज्जात्यनुरूपव। फलमपि महीलाभस्य वणिगादेरनुचितत्वात् स्त्रीप्राप्तिपुरःसरं द्रव्यलाभादिकं द्रष्टव्यम् ।
कैशिकीबहुलत्वं च नाटकधर्मः। प्रकरणस्याल्पकैशिकीत्वात् । कल्प्यार्थत्वं वरिणगादिनायकत्वं च प्रकरणधर्मः। तथा नाटकप्रकरणोत्थितत्वेऽपि नाटिका-प्रकरणिकयोः नाटकोक्तनायकानुसारेण' नायिकाव्यपदेशः । नायकानुसारित्वात् सर्वव्यवहाराणाम्। प्रकर्षेण क्रियते कल्प्यते अस्यामर्थः इति 'प्रकरणी'। अल्पार्थे कपि 'प्रकरणिका' । एते च द्वे अपि मुख्यरूपकद्वयसंकरनिष्पन्नत्वात् संकीर्णभेदरूपे । एवमन्येऽपि संकरभेदा रूपकद्वय-त्रयादि-सांकर्येण सम्भवन्ति परमदृष्टत्वादरजकत्वाच्च न ते लक्ष्यन्ते इति । नाटिकायां च राज्ञां, प्रकरणिकायान्तु वणिगादीनां विलासप्रधानं धर्मार्थाविरोधि वृत्तं नाटक-प्रकरणयोरिव व्युत्पाद्यम् ॥८७३॥
४. चतुर्थ रूपक भेद "प्रकरणी' का निरूपण इस प्रकार यहाँ तक नाटिकाके लक्षणका निरूपण कर अब आगे ग्रन्थकार 'प्रकरणी', के लक्षणका निरूपण प्रारम्भ करते हैं ।
___ाब 'नाटिका' के लक्षणके 'अतिदेश' द्वारा [अन्यके धर्मका प्रन्यके साथ सम्बन्ध दिखलाना 'मतिदेश' कहलाता हैं] 'प्रकरणी' का लक्षण करते हैं
[सूत्र १२४]-इसी प्रकार [अर्थात् नाटिकाको रचनाके समान हो] 'प्रकरणी' [को रचना करनी चाहिए] किन्तु उसमें, 'प्रकरण' में कथित [वणिक् प्रादि ही] नायक होना चाहिए। [८] ७३ ॥
इसी प्रकार अर्थात् नाटिकामें कहे चतुरंकत्वादि लक्षणोंके अनुसार 'प्रकरणी' को रचना करनी चाहिए। किन्तु [इस बातका ध्यान रखना चाहिए कि प्रकरणीमें] 'प्रकरण' में कहे हुए वणिक् प्रादिमेंसे ही [कोई] नायक होना चाहिए। इसलिए वरिणक् आदिके योग्य ही वेष और सम्भोग प्रादि सारा व्यवहार यहाँ दिखलाना चाहिए। स्त्री नायिका भी उसी जातिके अनुरूप होनी चाहिए। पृथिवीलाभ रूप फलके वरिपक प्राविकेलिए अनुचित होनेसे स्त्रीप्राप्ति सहित द्रव्यलाभादि फल भी ['प्रकरण' के समान ही होना चाहिए।
['नाटिका' के समान 'प्रकरणी' में भी नाटक और 'प्रकरण' दोनोंके धर्मोका समावेश होता है जिनमेंसे] कैशिकीका बाहुल्य नाटकका धर्म है। क्योंकि 'प्रकरण' में कैशिकी की न्यूनता होती है। ['प्रकरणी' में कैशिकी-बाहुल्य रहता है वह धर्म नाटकसे लिया जाता है 'प्रकरण' से नहीं] कल्पित अर्थका होना और वरिणगादिका नायकत्व ये दोनों 'प्रकरण' के धर्म [प्रकरणी में आते हैं। नाटक और 'प्रकरण' से उत्थित होनेपर भी 'नाटिका' और 'प्रकरणी' दोनोंमें, नाटक [और प्रकरण में कहे हुए नायकों के अनुसार ही नायिकाका व्यवहार होना चाहिए। क्योंकि सारे व्यवहार नायक के अनुसार ही उचित होते हैं। १. नायिकानुसारेम नायक व्यपदेशः
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