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________________ १७६ ] नाट्यदर्पणम् का ६०, सू० १०० रामे शातकुठारभासुरकरे क्षबमोच्छे दिनि क्रोधान्धे च वृकोदरे परिपतत्याजी कुतः संशयः।।। __ अत्र युधिष्ठिरराज्याभिषेकस्य द्रोपदीकेशसंयमनस्य च भाविनोऽपि सिद्धत्वेन कल्पनम् । __ यथा वा राघवाभ्युदये सप्तमेऽके सीताया वदनं विकाशमयता रामस्य शोकानलः शान्ति यातु सगीतयश्च जभुजैनृत्यन्तु शाखामृगाः। सन्धानाय विभीषणः प्रयततां लंकाधिपत्यश्रियः सौमित्रेदेशकण्ठ-कण्ठविपिनं कालः कियांश्छिन्दतः ॥ इति । अन्ये तु सत्कारा देशन प्ररोचनामाहुः । यथा वेणीसंहारे युधिष्ठिरः- [पुरुषभवलोक्य ] भद्र उच्यतां सहदेवः क्रद्धस्य वृकोदरस्यापयुषितां दारुणां प्रतिज्ञामुपलभ्य प्रणष्टस्य मानिनः कौरवनाथस्य पदवीमवेक्षितुमतिनिपुणमतयः, तेषु तेषु स्थानेषु परात्मवेदिनचारा, मन्त्रिणः सचिवाश्च भक्तिमन्तः पटुपट हव्यक्तघोषणाः सुयोधनसञ्चारवेदिनः प्रतिश्रुतधन-पूजा-प्रत्युपक्रियाः सञ्चरन्तु समन्तपञ्चकमिति । धन-पूजाप्रतिश्रवणप्रचोदिताः प्रत्युपकारे वतिष्यन्ते दुर्योधनप्रतिलम्भवार्तायै । इति । आप [अर्थात् युधिष्ठिर अपने राज्याभिषेकके लिए पाप रत्नोंके कलशोंको जलसे भरवावें, और द्रौपदीके बहुत दिनोंसे खुले हुए केशपाशको बाँधनेका उत्सव करे। क्योंकि तीक्ष्ण कुठारसे दीप्त करवाले क्षत्रिय रूप वृक्षोंको काटनेवाले परशुराम और क्रोधान्ध भीम के संग्राम में श्रा जाने पर [विजयमें ] क्या संदेह है ? __ इस [पाञ्चालकके कथन में प्रागे होनेवाले युधिष्ठिरके राज्याभिषेक तथा द्रौपदीके केशबंधन रूप अर्थको सिद्ध-सा मान लिया गया है। [अतएव यह 'प्ररोचना' नामक अङ्गका उदाहरण है। अथवा जैसे राघवाभ्युदयके सप्तम् अङ्कमें सीताका मुख प्रसन्नतासे खिल उठे, रामचंदजीकी शोकानल शांत हो जाय, वानर लोग गीत गाते हुए और हाथ हिलाते हुए नाचें, और विभीषण लङ्काकी राज्यलक्ष्मीको प्राप्त करने का प्रयत्न प्रारम्भ कर दे, क्योंकि लक्ष्मणको रावणके कण्ठोंके वनको काटनेमें कितनी देर लगनी है [तनिक देरमें काट डालेंगे। इसमें आगे होनेवाली बातोंको सिद्धवत् वर्णन किया गया है। इसलिए यह 'प्ररोचना' अङ्गका उदाहरण है। अन्य लोग सत्कारको प्राज्ञाको 'प्ररोचना' कहते हैं । जैसे 'वेणीसंहार'में युधिष्ठिर-[पुरुषकी मोर देखकर] भद्र सहदेवसे कह कि क्रुद्ध भीमकी बासी न होनेवाली [अर्थात् आज ही पूरी होनेवाली दुर्योधनके वधको] : तिरको सुनकर छिप गए हुए अभिमानी कौरवराजके स्थानका पता लगानेके लिए उन-उन स्थानोंपर अपने और शत्रुपक्षके पहिचाननेवाले गुप्तचर, मंत्री और भक्तिमान सचिव और तीव्र पटह वाद्य द्वारा स्पष्ट रूपसे घोषणा धन पूजा प्रावि पुरस्कारको सूचना प्राप्त, दुर्योधनके गमनागमन [के स्थानों को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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