SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५० ] नाट्यदर्पणम् . [ का०५४, सू०८१ अत्र रते प्रार्थना .. तथा कृत्यारावणे चतुर्थेऽङ्के सीताहरण-भातृदुःखाच्च दुःखितो विफलान्वेषणो लक्ष्मणः-- "तदपि नामायमम्मवृत्तान्तस्य प्रतिक्षणमुपचीयमान-नायकव्यसनभाजोऽभ्युदयावसानः संहारो नाटकस्येव भवेत्।" अत्राभ्युदयात्मक उत्सवो लक्ष्मणेनार्थितः । केचिदभ्यर्थनामात्रं प्रार्थनामाहुः । यया रघुविलासे कृतकहनमपितृवेषो राक्षसः [रावणं प्रति-- "वद् भग्नं विपिनं. धनुर्धरकलादक्षो यदक्षो इतः, शिक्षा लंघयतः क्षपाचरपते यन्मूनिदत्तं पदम् । यद् वेश्मानि परःशनानि शिशुना क्षुण्णानि कापेयतः, तत् क्षन्तव्यमशेषमेष पुरतस्ते देव ! बद्धोऽलिः ।। इति । केचित् तु प्राक्तनमिदं चाङ्ग न मन्यन्ते ॥ ५३॥ (५) अथोदाहृतिः इसमें रमणको प्रार्थना है। और कृत्यारावणके चतुर्थ अंकमें सीताहरण तथा भाईके दुःखसे दुःखित [सीताके] अन्वेषरणमें असफल लक्ष्मण [कहते हैं]--- ... "फिर भी क्या प्रतिक्षण बढ़ने वाली विपत्तियोंसे युक्त नायक वाले नाटकके उपसंहार के समान हमारा भी अभ्युदयमें पर्यवसान होगा।" यहाँ लक्ष्मणने अभ्युदयात्मक उत्कर्षकी कामना-प्रार्थना की है। [प्रतः यह 'प्रार्थना' नामक अंगका उदाहरण है। कुछ लोग अभ्यर्थनामात्र [अर्थात् प्रत्येक प्रकारकी याचना को 'प्रार्थना' कहते हैं । जैसे रघुक्लिासमें हनुमानके पिता [अर्थात् पवनकुमार का बनावटी वेष धारण करनेवाला राक्षस [रावरणके प्रति कहता है] - [मेरे पुत्र हनुमानने लंकामें आकर] जो उद्यान उजाड़ा, और धनुर्घरोंको कलामें दक्ष प्रक्षकुमारोंको मारा, और शिक्षाका उल्लंघन करनेवाले राक्षसराजके सिरपर जो पैर रखा, तथा वानरभावके कारण [कापेयतः] मेरे बच्चेने जो संकड़ों घर जला डाले, हे देव ! . उस सबको क्षमा करें। मैं [ उसका पिता ] अापके सामने यह मैं हाथ जोड़ता हूँ। ____ इसमें पवनकुमारका वेष धारण किए हुए मायावी राक्षस, जो रावणसे हनुमानको "क्षमा करनेकी याचना कर रहा है उसको भी 'प्रार्थना' अङ्ग कहा जा सकता है। ___ कोई [प्राचार्य] तो इससे पहिले [अर्थात् अनुमानको] पोर इसको [अर्थात् प्रार्थना] को जंग नहीं मानते हैं। (५) उदाहृति अब 'उदाहृति' नामक गर्भसंधिके पञ्चम अंगका लक्षण प्रादि करते हैं][सूत्र ८१}---[किसीके] समुत्कर्ष [का वर्णन] 'उवाहति' [कहलाता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy