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________________ का० ५१-५३, सू० ७६-७७ ] प्रथ बैंक: [ १४५ [महाराज श्रभिरेव दिवसपरिवर्तनगणनाभिः किणीभूत परिभवोद्वेगदुःखस्य में हृदयस्य प्रस्मृत एवानार्यदुःशासनेन स्वात्मनः केशमहापमानवृत्तान्तः । इति संस्कृतम् ] ! निष्प्रतीकार- कालहरणात् प्रभ्मृतं नष्टमिति ब्रुवती अथ प्रागनुभव पुनस्तमनुस्मरतीति ॥ ५० ॥ एतानि प्रतिमुखसन्धेरंगानि त्रयोदशेति || [३] अथ गर्भसन्धे रंगानि व्याख्यातुमुहिराति---- [ सूत्र ७६ ] - संग्रहो रूपमनुमा प्रार्थनोदाहृतिः क्रमः । उद्वेगो विप्लवश्येतद् गुतः कार्यष्टकम् ॥५१॥ आक्षेपावलं मार्गो सत्याहरण- तोटके | पञ्चैतानि प्रधानानि गर्भेऽङ्गानि त्रयोदश ॥ ५२|| 'गुणत:' इति गुणभावेन, गुणमुपकारमपेस्य वा । तेन फलोद्भेददर्शनार्थं संग्रsोऽवश्यं निबन्धनीयः । नेपादीनि तु सुख्यानीति ।।५१-५२ (१) अथ संग्रहः [ सूत्र ७७] - संग्रहः साम-दानादिः साम-दाने दण्ड-भेदयोरुपलक्षणम् | आदिशब्देन सायेन्द्रजालादिसंग्रहः । यथा रत्नावल्याम--- हे महाराज ! इन्हीं दिनोंके परिवर्तनों को गिनते हुए मैं, हृदयमें गाँठ-सी डाल देने वाले [घाव या बार-बारकी रगड़से शरीर के किसी स्थानपर जो कडो गाँठ-सी बन जाती है उसको किरण कहते हैं.] दुःशासनके द्वारा किए गए अपने बालोंके खींचे जानेके अपमानके वृत्तांतको भूल गई थी । यहाँ [इस कथन में ] पहिले [केशग्रहरणके कालमें] अनुभव द्वारा प्राप्त और प्रतिकार के बिना हो कालके व्यतीत होनेके कारण भूले हुए [दुःख ] को इस प्रकार कहती हुई [ द्रौपदी ] उसको फिर स्मरण करती है । [ अतः यह 'अनुसर्पण' का उदाहरण है ] । ये प्रतिमुखसंधिके तेरह श्रङ्ग हैं | (३) गर्भ सन्धिके तेरह अङ्ग अब गर्भसन्धिके अंगोंकी व्याख्या करनेके लिए उनके नाम गिनाते हैं। [ ७६ ]- १. संग्रह, २. रूप ३. अनुमा, ४ प्रार्थना, ५. उदाहृति, ६. क्रम, ७. उग, ८. और ९. विप्लव । ये म्राठ [प्रंग] गौरण रूपमें [मा विशेष प्रयोजनवश प्रयुक्त ] करने चाहिए । ५१ । ९. प्राक्षेप, १०. अधिवल, ११. मार्ग, १२. प्रत्याहरण और १३. तोटक । ये पाँच अंग गर्भसंधिमैं प्रधान [अंग] हैं। इस प्रकार [गर्भसंधिके] तेरह श्रंग [होते] हैं । ५२ । (१) संग्रह [ सूत्र ७७] - [ सबसे पहिले] 'संग्रह' नामक गर्भसंधिके अंगका लक्षण करते हैं ]साम वान प्रादि [के प्रयोगको] 'संग्रह' [ कहा जाता ] है । जैसे रत्नावलीमें Jain Education International For Private & Personal Use Only ---- www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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