SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नाट्यदर्पणम् "अश्वत्थामा -- [कर्ण] मुद्दिश्य ] रे रे राधागर्भभारभूत सूतापसद ! कथमपि न निषिद्धो दुःखिना भीरुरणा वा, द्रुपदतनयपाणिस्तेन पित्रा तव भुजबलदर्पाध्यायमानस्य वामः, शिरसि चरण एष न्यस्यते वारयैनम् ॥ " ममाद्य । १४२ ] यथा वा कृत्याराव द्वितीयेऽङ्के"रावण - विदेह राजपुत्रि ! विक्रमेण मया लोकाः, त्वया रूपेण निजिताः । सब्रह्मचारिणमतो भजमानं भजस्व माम ॥ सीता --हदास ! अप्पा दाव तए न निज्जिदो, का गणणा लोपसु ।" [हताश आत्मा तावत् त्वया न निर्जितः, का गणना लोकेषु । इति संस्कृतम् ] अनेन प्रत्यक्ष कर्कशेन वाक्येन रावणवचनं प्रध्वस्तम् । यथा वा रघुविलासे- "रामः -- [ विराधवेशं रावणं प्रति साक्षेपम] - [ का० ५०, सू० ७३ Jain Education International युद्धश्राद्धमयाः सकुट्टिम तटीशाणा निशाताश्रयाः, देवीमप्यनलम्भविष्णव इमे त्रातु पृषत्का यदि । मनन्तः पृथुपुखपत्र पवनैर्धम्मिल्लमाल्य श्रियं निभिद्यः कथमिद्धको कशघनां पौलस्त्यकण्ठाटवीम् ॥” " श्रश्वत्थामा - [कको लक्ष्य करके] अरे राधाके गर्भके भारभूत नीच सूत ! [ यह ठीक है कि ] दुःखी अथवा [तेरे कहनेके अनुसार ] भीरू मेरे उन पिता [ द्रोणा चार्य ] ने किसी काररणसे श्राज द्रुपदतनय [ ष्टष्टद्युम्न ] के [ अपना शिरको काटनेके लिए उद्यत ] हाथको नहीं रोका, [ उसे जाने दे] पर ले भुजबल के दर्पसे फूलने वाले तेरे सिरपर यह मैं अपना बांया पैर रखता हूँ [तेरे भीतर सामर्थ्य हो तो ] इसको रोक [के दिखला ] । यह वज्र के समान प्रत्यक्ष कर्कश वचन 'वज्र' नामक अङ्गका उदाहरण है । अथवा जैसे 'कृत्यारावरण' के द्वितीय में रावण - हे जानकि ! मैंने अपने पराक्रमसे, और तुमने अपने रूपसे लोकोंको जीत लिया है [इसलिए हम दोनों सहाध्यायी है ] इसलिए अपने चाहने वाले अपने सब्रह्मचारी [सहाध्यायी मुझ रावण] को [तुम भी] प्रेम करो । सोता -- श्ररे नीच ! तूने तो अपने [ श्रात्मा ] आपको ही नहीं जीत पाया है, लोकों [के जीतने] की तो बात ही कहाँ हैं ? इस प्रत्यक्ष कर्कश वाक्यसे रावणका वचन [ प्रध्वस्त] कट जाता है । [ इसलिए यह 'व' नामक के दूसरे भेदका उदाहरण हुआ । ] । प्रथवा जैसे रघुविलासमें [ कार्य-विध्वंस रूप वज्ज्र के तृतीय भेदका उदाहरण ] - [विराधवेष धारी रावरणके प्रति राम कहते हैं ] युद्धकी श्रद्धासे भरे हुए पक्के फर्श वाली पहाड़ की तटी रूप शारण [ पर घिसने ] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy