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नाट्यदर्पणम् । का० ४५, सू० ६० 'सीतानिमित्तको दाशरथितो रावणक्य' इति । तस्यार्थस्य तदेतच्चापारोपणं बीजमुपस्थितम् । कथितं च मे करइकनाम्ना लङ्काचारिणा चरेण यथा-'भूमण्डलस्येव रावणस्यापि सीतायां प्रेम अस्त्येव, किन्तु दोर्दोच्चापारोणे नायातः' । [विमृश्य] तन्नूनमसौ पश्चादपि सीतामपहरिष्यति ।” इति । (११) अथ विधानम्
[सूत्र ६०]--विधानं सुख-दुःखाप्तिः द्वयोः सुख-दुःखयोरेकत्र अनेकत्र वा पात्रे प्राप्तिः । एकस्यैव वा सुखस्य दुःखस्य वा प्राप्तिः, विधानम् । एकत्रपात्रे सुख-दुःखयोः प्राप्तिर्यथा-मालतीमाधवे"माधवः- यद्विस्मयस्तिमितमस्तमितान्यभावम् ,
आनन्दमन्दममृतप्लवनादिवाभूत। तत्सन्निधौ तदधुना हृदयं मदीयं,
___ अङ्गारचुम्बितमिव व्यथमानमारते ।। इत्यनेन सानुरागमालत्यवलोकनान्माधवस्य सुख-दुःखाप्तिः ।
अनेकत्र यथा तापसवत्सराजे काञ्चनमालया ज्ञातिगृह वार्ताविशेषापदेशात् वासवदत्ताया वियोगदुःखेऽपह्न ते राजा स्मित्वाऽऽह--..
'सीताके कारण दशरथ-पुत्रके द्वारा रावणका वध होगा' । उस बातका बीजरूप यह चापारोपण [का प्रसङ्ग पा गया है । और लङ्कामें विचरण करनेवाले करइक नामक गुप्तचर ने मुझसे कहा भी है कि--'भूमण्डलके [अन्य सब राजानोंके] समान रावण भी सीताको चाहता ही है किन्तु अपनी भुजाओंके दर्पके कारण चापारोपणमें नहीं पाया है। [कुछ सोचकर] तो निश्चय ही यह बादको सीताका अपहरण करेगा। यह [भी कार्यको विचारणा रूप होनेसे युक्ति नामक अङ्गका उदाहरण है] । (११) विधान
अब विधान [नामक, मुखसन्धिके ग्यारहवें अङ्गका लक्षण करते हैं]-- [सूत्र ६०]--सुख-दुःखको प्राप्ति 'विधान' [कहलाती है।
सुख तथा दुःख दोनोंकी एक पात्रमें अथवा अनेक पात्रोंमें प्राप्ति । अथवा सुख और दुःखमेंसे किसी एकको ही प्राप्ति [दोनों ही] विधान [नामक अङ्गके भीतर समाविष्ट हो जाते हैं। एक ही पात्र में सुख-दुःख दोनोंको प्राति [का उदाहरएप जैसे 'मालतीमाधव' में माधव [कहता है]
__ "माधव-जो [मेरा हृदय मालतीको उपस्थितिमें] विस्मयसे.. कुण्ठित, अन्य समस्त भावोंसे शून्य, अमृतमें डुबकी लगानेसे प्रानन्दःनिमग्न-सा हो रहा था वही मेरा हृदय इस समय [मालतीके वियोगकालमें] अङ्गारोंसे जला हुआ-सा वेदनामय हो रहा हैं ।"
इससे अनुरक्ता मालतीको देखकर माधवको सुख और [उसके वियोगमें] दुःखको प्रालि [एक ही पात्रमें पाई जाती है।
_ भिन्न-भिन्न पात्रोंमें [सुख और दुःखकी प्राप्तिका उदाहरण] जैसे 'तापसवत्सराज' में पितगृहके समाचार विशेषके बहानेसे काञ्चनमाला द्वारा वासवदत्ताके वियोग दुःखको छिपाने पर राजा मुस्कराकर कहते हैं
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