________________
का० ३६, सू० ४६ ]
गर्भ
व्याख्यातुमाह
[ सूत्र ४६ ] - बीजस्यौन्मुख्यवान् गर्भो लाभालाभगवेषणैः । उत्पत्ति-उद्घाटनदशाद्वयाविष्टस्य बीजस्य श्रन्मुख्यं फलजननाभिमुख्यं तद्वान् । प्राप्त्याशया तृतीयावस्थया परिच्छिन्नो लाभालाभगवेषणैः पुनः पुनः भवद्भिर्युक्तः प्रधानवृत्तांशो गर्भसन्धिः ।
अथ
प्रथमो विवेकः
यथा वेणीसंहारे तृतीय- चतुर्थ - पश्ञ्च मेध्वं केषु । फलसाधकानां पाण्डवानां वृत्ते नेपथ्ये भीमसेनेन -
'कृष्टा येन शिरोरुहेषु पशुना' । इत्यादिना प्रतिज्ञानिर्वहणोपक्रमात विजयानुगुण्यलाभेन बीजस्योन्मुख्यं दर्शितम् ।
तथा
[ ६७
'भगदत्तलुहिल कुम्भके' [भगदत्तरुधिरकुम्भकैः ] |
इत्यादिना राक्षसीमुखसूचितेन प्रधानयोधवधेन । 'एशे खुधिट्ठज्जु
केशेषु गिरिहय दोणे वावायीइदि ।' [' एष खलु धृष्टद्युम्नेन केशेषु गृहीत्वा द्रोणो व्यापाद्यते' । इति संस्कृतम् । ] त्यादिना राक्षसमुख सूचितेन च सेनापतिवघेन । स्वबलक्षोभकारिणा कर्ण३ गर्भसन्धि
Jain Education International
अब गर्भ [ संधि] की व्याख्या करनेके लिए कहते हैं
[सू० ४६ ] - [मुख्य फलके] लाभ और प्रलाभ [ प्रर्थात् कभी प्राप्तिको प्राशा और कभी प्राप्तिको निराशा ] के अनुसंधानके द्वारा बीजकी फलोन्मुखतासे युक्त [कथाभाग ] गर्भ [ संधि कहलाता ] है ।
[पहिले मुख तथा प्रतिभुख संधिमें कही हुई] उत्पत्ति तथा उद्घाटन रूप दो अवस्था से 'युक्त बीजका जो फल-जननके उन्मुख होना, उससे युक्त [ तीसरा गर्भसंधि होता है । और वह ] प्राप्त्याशा रूप तृतीयावस्था से सीमित [अर्थात् तृतीयावस्थाके साथ प्रारम्भ और उसकी समाप्तिके साथ समाप्त होनेवाला ] होता है। बार-बार होनेवाले लाभ तथा अलाभके अनुसंधानोंसे युक्त प्रधान कथाका भाग गर्भसंधि [कहलाता ] है ।
जैसे वेणीसंहारमें तृतीय, चतुर्थ और पञ्चम प्रङ्कोंमें [गर्भसंधि निम्न प्रकार पाया जाता है] । फलके साधक पाण्डवोंके चरित्रमें नेपथ्य में भीमसेनके द्वारा
“कृष्टा येन शिरोवहेषु" [ तृतीय अजूके ४७वें श्लोकमें इसका अर्थ पीछे पृष्ठ पर
देलो] ।
इत्यादिसे [ भीमसेनके द्वारा अपनी ] प्रतिशाके पूर्ण करनेके उपक्रमसे विजयकी अनुकूलताकी प्राप्तिके द्वारा बीजकी फलोन्मुखताका प्रदर्शन किया है। और [ उसी तृतीय के प्रवेशक में ]
"भगवतके रुषिरसे भरा हुआ घड़ा" इत्यादिके द्वारा राक्षसीके मुखसे सूचित कराए गए प्रधान योषा [भगदत्त] के बबसे, और [उसी प्रवेशक में ]
"यह सृष्टद्युम्न बाल पकड़कर द्रोरणको मार रहा है" इसके द्वारा डाक्षसके मुलसे सूचित कराए गए सेनापतिके बबले तथा [उसी अमें] अपनी सेनामें प्रशांति पैदा करनेवाले क
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org