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________________ का० ३५, सू० ३८ ] प्रथमो विवेकः [ ८५ (१) अथारम्भं व्युत्पादयति सूत्र ३८]-फलायौत्सुक्यमारम्भः फलं मुख्यं साध्यम् । तदर्थमौत्सुक्यं उपायविषयं, अनेनोपायेन एतत सिध्यतीति । स्मरणोत्कण्ठादि कर्म, तदनुगुणो व्यापारश्चोभयमारम्भः। उपाविषयमोत्सुक्यं, औत्सुक्यानुगुणो व्यापारश्चारम्भावस्थेत्यर्थः । यथा वेणीसंहारे प्रथमेऽके सहदेवं प्रति"भीमः-अथ भगवान कृष्णः केन पणेन सुयोधनं प्रति मन्धिं कतु प्रहितः । सहदेवः-आर्य ननु पञ्चभिर्मामैः।" इत्यादि। यथा वा नलविलासे प्रथमेऽके--"नेपथ्ये तूर्यध्वनिः । . कलहंसः--देव युगादिदेव-देवातायतन-सन्ध्यावलिपटहध्वनिग्यम् ॥ राजा- [स्वगतम् ] अहो परमं शकुनम् । [पुनर्विमृश्य प्रेषयाम्येतं कलहंसं दमयन्त्याः पार्वे । एषा च मकरिका विदर्भभाषा-वेषाचारकुशला सहैव यातु।" इत्यादीति। पिछली कारिकामें पांचों प्रवस्थानोंका 'उद्देश' अर्थात् नाममात्रसे कथन किया गया था । अब उनमेंसे एक-एक अवस्थाका क्रमसे लक्षण मादि करते हैं। उनमें सब पहले प्रारम्भ अवस्थाका लक्षण देते हैं। (१) भारम्भावस्था अब प्रारम्भ [अवस्था] का विवेचन करते हैं[सूत्र ३८] --फल [की प्राप्ति केलिए प्रोत्सुक्य 'प्रारम्भ' [अवस्था कहलाती है। फल [का पर्य] मुख्य साध्य [है। उसके लिए उपाय-विषयक औत्सुक्य अर्थात् इस उपाय [के करने से यह [फल] सिद्ध होगा इस प्रकारका स्मरण तथा उत्कण्ठादि कर्म, और उसके अनुकूल व्यापार दोनों प्रारम्भ [अवस्था होते हैं। प्रर्थात् उपाय-विषयक औत्सुक्य, और प्रौत्सुक्यके अनुरूप व्यापार [दोनों प्रारम्भावस्था है यह अभिप्राय है। जैसे वेणीसंहारके प्रथम प्र सहदेवके प्रति [भीम कहते हैं कि]-- "भीम-अच्छा भगवान् कृष्णको किन शर्तोपर दुर्योधनके पास सन्धि करनेके लिए भेजा है ? सहदेव-प्रायं पांच गांवोंके द्वारा।" इत्यादि । अथवा जैसे नलविलासके प्रथम अङ्क में"नेपथ्य में वाद्यध्वनि [सुनाई देता है । कलहंस --देव, युगादिदेवके मन्दिर [देवतायतन] के संध्याकालीन पूजनके समयके वाद्योंका यह ध्वनि है। राजा---[स्वगत] अहो यह बड़ा अच्छा शकुन है। [फिर विचार कर] तब इस कलहंसको दमयन्तीके पास भेज दूं। और विदर्भ देशकी भाषा वेष तथा प्राचार प्रादिको जानने वाली यह मकरिका [दासी] भी उसके साथ ही भेज दी जाय ।" इत्यादि । ___ यह सब मुख्य फलकी प्राप्तिके लिए उपाय विषयक प्रोत्सुक्य तथा तदनुरूप व्यापारके सूचक हैं । अतः ये प्रारम्भावस्थाका प्रदर्शन करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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