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________________ भूमिका प्रत्यकार का देश प्रस्तुत ग्रन्थ 'नाटयदर्पण' के रचयिता रामचन्द्र गुरणचन्द्र पश्चिम भारत में स्थित गुजरात देश के निवासी थे । संस्कृत साहित्य के विशाल भण्डार को इतना गौरवश्य एवं समृद्ध बनाने में [शारदा देश ] काश्मीर के बाद गुजरात का विशेष महत्वपूर्ण योगदान रहा है । पुजरात हिल पट्टन का प्रसिद्ध राज्य विद्वानों का प्रमुख प्राश्रय स्थान भौर भारतीय- वाह मय की सेवा एवं समृद्धि में सबसे प्रग्रगण्य राज्य था । इस राज्य की स्थापना विक्रम सं० ८०२ [ई० सत्रु ७४६] में हुई थी । 'भरण हिल - गोपाल' नामक कुशल शिल्पी ने इस स्थान की परीक्षा के बालक्कड' वंश के तत्कालीन राजा 'मोती सम वणराय' को इस स्थान पर उत्तम 'पत्तन' बसाने का परामर्श दिया था । तदनुसार 'मोती सम वणराय' ने इस स्थान पर अपनी राजधानी का निर्मारण कराया पौर 'अराहिल- गोपाल' के नाम पर उसका नाम 'प्रणहिल- पट्टण' रखा। यह 'मरण हिल पट्टण' मागे चलकर भारत का एक प्रमुख राज्य बना और उसने संस्कृत साहित्य को समृद्ध बनाने में बड़ा महत्त्वपूर्ण योगदान किया । काश्मीर के समान 'अणहिल- पट्टन' का राज्य भी शैव-राज्य था । उसके राजा प्रायः शैव सम्प्रदाय 'के' अनुयायी थे । किन्तु साहित्य-समृद्धि के क्षेत्र में वहां जैनों का विशेष महत्त्वपूर्ण भाग रहा है । ११वीं शताब्दी से लेकर १३वीं शताब्दी तक प्रायः दो सौ वर्ष पर्यन्त 'मरण हिल-पट्टन' का प्रभुत्व अपने चरमोत्कर्ष पर रहा। इस बीच में (१) भीमदेव (१०२१-६९ ई०] (२) कर्णदेव [१०६४ से ९४ ई० ], राजा के समय 'माहिल पट्टम' 'शेव' विद्वानों का प्रत्यन्त प्रिय केन्द्र बन गया था । शैवाचार्य ज्ञानदेव, सोमेश्वर पुरोहित, सुराचार्य, भोर मध्यदेश के श्रीधर तथा श्रीपति भादि शैव-धर्म के अनेक प्रसिद्ध विद्वान् 'भरण हिल पट्टन' की राजसभा के रत्नों के रूप में उसे सुशोभित कर रहे थे। राजा भीमदेव के 'सन्धि विग्रहिक' दामोदर पण्डित उस समय अपनी विद्वता के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध थे । उनके प्रभाव से ही उस समय 'अहिल -पट्टन' विद्वानों के माकर्षण का केन्द्र बन गया था। यों तो 'माहिल पट्टन' का राज्य शेव राज्य था। उसके राजा मोर 'सान्धिविग्राहिक' दामोदर पण्डित दोनों शैव सम्प्रदाय के अनुयायी थे, किन्तु उनके यहाँ सभी धार्मिक विद्वानों का समान रूप से स्वागत होता था। एक भोर जहाँ शेवाचामं ज्ञानदेव सरीले अंब विद्वान उनकी सभा को सुशोभित करते थे उन्हीं के साथ मोच [भूशुकच्छ ] के कोलकवि 'धर्म तस्वो-पप्लव' की युक्तियों के बल पर सभा में वाद-विवाद करते थे। उसी सभा में जैनाचार्य शान्त-सूरि इनकी सभा के पण्डित थे जो 'बौद्ध तर्क से उत्पन्न दुरूह प्रमेयों की शिक्षा एवं सर्क बुद्धि के लिए अत्यन्त प्रख्यात थे। पट्टन का राजद्वार जैसे सभी धर्मों और सम्प्रदायों के विद्वानों के लिए समान रूप से प्राकर्षण का केन्द्र था इसी प्रकार सभी देशों एवं राज्यों के विद्वानों के लिए भी वह माकर्षण का केन्द्र था । 'कर्ण सुन्दरी नाटिका' के कर्ता काश्मीरी पण्डित बिल्हण घोर नबाङ्गी टीकाकार जयदेव -सूरि ने कर्णदेव के शासन काल में 'अलहिल-पट्टन' की राजसभा को सुसोभित fear था। प्रस्तुत ग्रन्थ 'नाटय-दर्पण' के रचयिता श्री रामचन्द्र सुरणचन्द्र भी इसी विद्वज्ज-वितर्व प्रगतिशील राज्य की विभूति थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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