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नाट्यदर्पणम्
आदौ मानपरिग्रहेण गुरुणा दूरं समारोपितां पश्चात् तापभरेण तानवकृता नीतां परं लाघवम् । उत्सङ्गान्तरवर्तिनीमनुगमात् सम्पिण्डिताङ्गीमिमां सर्वाङ्गप्रयं प्रियामिव तरुश्छायां समालम्बते ॥" इति तृतीयासमाप्तौ उत्तराङ्ककार्यानुसन्धायको बिन्दुः । यथा वा नलविलासे चतुर्थे स्वयम्बराङ्के नेपथ्ये वन्दी -
विन्यस्याभिनवोदये श्रियमयं राशि प्रतापोज्झितो द्यतस्य व्यसनीव धूसर करः सन्त्रुट्यदाशास्थितिः । निद्रायद्दललोचनां कमलिनीं सन्त्यज्य मध्येवनं क्रामत्यम्बरखण्डमात्रविभवो देशान्तरं गोपतिः । इति ।।
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यथा तापसवत्सराजे
जैसे तापस वत्सराज चरितमें
प्रारम्भ में [छाया-पक्षमें प्रातःकाल और नायिका-पक्षमें मानके ग्राविमें] प्रबल मान [परिमाण और नवरों] को ग्रहरण करके दूर तक फैली हुई [छाया पक्षमें दूर तक फैली हुई और नायिका पक्षमें नायकसे दूर भागी हुई ], वादको तनुताको प्राप्त कराने वाले सन्ताप [नायिका पक्षमें पश्चात्ताप और छायापक्षमें सूर्यके चढ़ाव] के प्राधिक्यसे प्रत्यन्त लघुताको प्राप्त हुई, इसलिए [धनुगमात् अर्थात् ] लौटकर अङ्गोंको समेटकर गोद में समाई प्रियाके समान eturnt वृक्ष सब भङ्गोंसे प्रेम पूर्वक ग्रहण कर रहा है ।।
यहाँ तृतीय प्रकी समाप्ति में धगले मका सम्बन्ध जोड़ने वाला 'बिन्दु' रखा गया ] है ।
प्रथवा जैसे नलविलासके स्वयम्बराङ्क नामक चतुर्थ प्रङ्क [के अन्त में] में नेपथ्यमें बम्बी [सन्ध्याकालमें सूर्यास्तका वर्णन करता हुआ निम्न श्लोक कह रहा है। इस इलोकमें इसे नलकी प्रवस्थाका भी वर्णन किया गया है] ।
[ यहाँ 'गोपति' शब्द शिष्ट है। उसके वो धर्थ होते हैं एक राजा और दूसरा सूर्य । गो पृथिवीका नाम है। उसका पति अर्थात् राजा नल और 'सूर्य' पक्षमें 'गवां किरणानां पतिः गोपति सूर्यदेव:' इसी प्रकार प्रथम पादमें भाया हुआ 'राशि' ] राजा पद भी शिलष्ट है । उसका एक अर्थ नलका विरोधी राजा, चोर दूसरा अर्थ चन्द्रमा है। प्रभी जिसका उदय हुआ है इस प्रकारके राजा [अर्थात् नल पक्षमें अपने विरोधी राजाको] यह अर्थ होता है । और सूर्य पक्षमें चन्द्रमाको] अपनी लक्ष्मी [नल पक्षमें धन-सम्पत्ति और सूर्य पक्षमें तेज ] बेकर स्वयं प्रतापरहित, हुप्रा खेलनेके व्यसनी [जुझारी] के समान मलिन किरणों [जुझारी पक्षमें करका अर्थ हाथ होगा ] वाला बनकर, और [ सन्त्रट्यदाशास्थिति: सूर्यके पक्षमें उसके प्रस्तोन्मुख हो जानेसे प्राशा अर्थात् ] दिशाओंकी मर्यादाको विलोप करता हुआ [जुधारी पक्षमें जिसकी प्रशाकी स्थिति बिल्कुल समाप्त हो गई है अर्थात् अपनी जीतसे बिल्कुल निराश हो चुका है इस प्रकारका 'गोपतिः' अर्थात् राजा नल और ] सूर्य [दोनों ही 'निद्रायद्दललोचना' सूर्य पक्षमें] जिसकी पंखुड़ी-रूप प्राँखें मिची जा रही हैं इस प्रकार की कमलिनीको [औौर नल पक्षमें सोती हुई दमयन्तीको । सूर्य पक्षमें मध्येवनं] जलके बीचमें [पोर मल पक्षमें जंगलमें ]
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[ का० १६, सू० १६
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