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________________ १८ ] नाट्यदर्पणम [ का०५, सू०४ ख्याताघराजस्य चरितं यत्रेत्यन्यपदार्थः । इह ख्यातत्वं विधा, नाम्ना, चेष्टितेन, देशेन च । कौशाम्यां चरितं वत्सराजेनैव रजकम् । चरितमपि वत्सराजस्य । कौशाम्यां वासवदत्तालाभादिकमेव । वासवदत्तालाभादिकं वत्सराजस्य कौशाम्ब्यामेव । चरितख्यातत्वं च प्रधानचरितापेक्षया। ततस्तदनुयायीनि रन्जकत्वार्थमख्याताम्यपि चरितानि क्रियन्ते । तेन बहुषु रामप्रबन्धेषु सीताहरणानयनोपायानां युद्धानां गौण पात्राणि । अपरेषां च भणितिविशेषादीनां भेदेऽपि न विरोधः । पूर्वकालके प्रसिद्ध राजाका चरित्र जिसमें प्रदर्शित किया गया हो वह [ख्यातायरामचरित' अभिनेय काव्य हुआ], यह अन्य-पदार्थप्रधान [बहुव्रीहिसमास 'ख्यातायरामचरित' इस पद में किया गया है। इसमें प्रसिवस्व तीन प्रकारसे होता है, १ नाससे [प्रसिदत्व), २कायोंसे चेष्टितेन प्रसिद्धत्व प्रौर ३ देशसे प्रसिद्धत्व । [मागे इन तीनों प्रकारके प्रसिदत्वको उदाहरणों द्वारा स्पष्ट रूपसे दिखलाते हैं। जैसे नामकी प्रसिसिका उदाहरण यह है कि कौशाम्बीमें चरित [अर्थात चहाएं अभिनय वत्सराज के नाम से ही हरयाकर्षक होता है। अर्थात इस रूपमें वत्सराज नामसे नायक उदयनका ख्यातत्व बनता है। दूसरा चरितसे प्रसिद्धका उदाहरण दिखलाते हैं] और वत्सराज [उवयन] का कौशाम्बोमें वासवदत्ता-प्राति रूप चरित ही [हत्याकर्षक होता है। यह परित कार्यों द्वारा प्रसिद्धिका उदाहरण हमा। इसोको तीसरे प्रकारसे बदल देनेपर] बत्सराज [उदयन का वासवदत्तालाभारिक [चरित] कौशम्बीमें ही [हण्याकर्षक होता है यह देशसे प्रसिद्धिका उदाहरण हुमा । अर्थात् एक वत्सराजके चरित्रमें ही तीनों प्रकारको प्रसिहि बाई जाती है । यह चरित्रकी ख्याति प्रधान नायकको दृष्टिसे हो [ली बातो] है। इसलिए शोभाधान केलिए उस [प्रषान-नायक] के अनुयायी प्रसिद्ध चरित्र भी [नाटकमें उपनिवड] किए जाते हैं। इसलिए बहुतसे राम-काम्योंमें सीता हरण तथा पुनः प्रालिके युटोंमें गौण पात्र [भी पाए जाते हैं] । और अन्य [भप्रधान पात्रों को उक्तियोंमें [भिन्न-भिन्न नाटकों में बिरोब होनेपर भी दोष नहीं होता है। ___वहां ग्रन्थाकारने 'नाम्ना, चेष्टितेन देशेन च' तीनों प्रकारकी प्रसिदि एक वत्सराज उदयन के चरित्रमें ही दिखलाई है। और उसकेलिए तीन भिन्न-भिन्न स्थानोंपर 'एबकार' का प्रयोग किया है । 'कौशाम्व्यां चरितं वत्सराजेनैव रजकम्'। इस वाक्यमें 'एव कार' द्वारा वत्सराज नामपर बल दिया गया है । अर्थात् कौशाम्बी में वहाँके पूर्ववर्ती राबा वत्सराज उदयनका नाम प्रसिद्ध है इसलिए वहां उनका चरित्र ही लोगोंको प्रिय लगता है। यह 'वत्सराजेनैव' में वत्सराजके साप प्रयुक्त 'एक्कार' का अभिप्राय है। दूसरी जगह 'परितमपि वत्सराजस्य कौशाम्व्यां वासवदत्तलाभादिकमेव' में प्रयुक्त ‘एवकार' वासवदतां-प्राप्ति रूप चरितके ऊपर ही बल देता है। अर्थात् वत्सराज उदयनके पन्य चरित्र इतने हृदयाकर्षक नहीं है जितना कि वासवदत्ता-प्राप्तिका वृत्तान्त । यह 'चेष्टितेन' प्रसिद्धिका उदाहरण हुमा । तीसरी जगह 'वासवदत्ता लाभादिकं वत्सराजस्य कौशाम्म्यामेव' यहाँ 'कौशाम्बी' के साप प्रयुक्त 'एवकार' कौशाम्बी रूप देशपर विशेष बल देता है। पर्याद वत्सराज उदयनका वासवदत्ता-लाभरूप चरित भी केवल कौशाम्बी में ही विशेष रूपसे लोकप्रिय है भन्या नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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