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________________ :: सम्पादकीय : श्रो अरिहंत परमात्मा सर्वज्ञ होय छे तेमना ज्ञानमा क्यांय अपूर्णता होती नथा तेथी जैन दर्शन ए सर्वज्ञनु अने सत्यनुदर्शन कहेवाय छे. ए दर्शननो अविच्छिन्न प्रवाह महान श्रुतधरीनी परंपराथो चाले छे. आठसो वर्ष पहेलां थइ गयेला पू० कलिकाल सवज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा ए महान् श्रुतधर हता. तेम नो श्रुतनी सार्वत्रिक प्रतिभा जगप्रसिद्ध छे. तेमना पट्टधर पू० आ० श्री रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज महाविद्वान कवि अने गुरु समर्पित हता. तेमणे एकसो प्रबन्ध रच्यानो प्रबोधचितामणिमां उल्लेख छे. तेमांना केटलाक ग्रन्थो विद्यमान छे. तेमनो 'नलविलासनाटकम्' पण एक महान् ग्रन्थ छे. नलविलास ए नल राजा अने दमयन्ती महासतीना जीवनने वणी लेतु नाटक छे. जेमां प्रसंग सौष्ठत्व, रोवकता भावनी उत्कट रजूआत, प्रसंगनु आबेहूब वर्णन वाचकने प्रासंगिक हास्यरस तथा प्रासगिक भारे करुणरस पेदा करी दे छे. तेमा सूक्तिओ आदि द्वारा धर्म, शील, फरज, सज्जनता आदि गुणो ने प्राप्त करवानी अद्भुत रजूआत छे. तेना सात अंक छे. उपरांत पहेला अंकमां आमुख अने छट्ठा अंकमां गर्भाङ्कनो समावेश छे. प्रासंगिक पात्रोनी गोठवणी रसिक छे. मा ग्रन्थ सने १९२६मां गायकवाड ओरिएन्टल सीरीझ सेन्ट्रल लाइब्रेरी बडोदरा तरफथी श्री गोन्देकर तथा श्री लालचन्द बी. गांधी हस्तक सम्पादन करावी प्रसिद्ध थएल छे. तेमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001891
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
AuthorVijayendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1984
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size6 MB
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