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नलविलासे कलहंस:- दाम्भिकोऽयं न किमपि जानातीति तत्रत्याः कथयन्ति। मया पुनर्गवेषयतापि न कोऽपि दम्भो लक्षितः। राजा- अत्रार्थे तत्रत्याः प्रमाणं न भवान्। यतः
आगन्तुकोऽनुरागं नेतुमविज्ञातदूषणः शक्यः।
विज्ञातदूषणः खलु जनस्तु शक्यो न सहवासी।।१८।। किन्तु कथय सहवास्यपि राजा केन हेतुना तस्य दम्भं नावधारयति। कलहंसः- राज्ञो व्यामोहो घोरघोणस्य च भाग्यमनवधारणे हेतुः। राजा- उपपन्नमिदम्
जन्मिनां पूर्वजन्माप्तभाग्यमन्त्राभिमन्त्रितः।
अचेतनोऽपि वश्यः स्यात् किं पुनर्यः सचेतनः।।१९।। ततस्ततः।
कलहंस- यह पाखण्डी है, कुछ भी नहीं जानता है ऐसा वहाँ के लोग कहते हैं। (परन्तु) मेरे द्वारा अन्वेषण करने पर भी उसके पाखण्डी होने का कोई कारण नहीं दिखलाई पड़ा।
राजा- इस विषय में वहीं के लोग प्रमाण हैं आप नहीं। क्योंकि
अतिथि (नवागन्तुक) के प्रेम (स्नेह) को ले जाने (अर्थात् किसी तक पहुँचाने) के लिए (यह उसी से) सम्भव है, जो (उसके) दोष से अनभिज्ञ है, जबकि दोष को जानने वाला व्यक्ति तो साथ में रहने योग्य भी नहीं है।।१८।।
लेकिन यह कहो कि एक साथ रहने पर भी राजा भीम यह किस कारण से नहीं जानते हैं कि वह (घोरघोण) पाखण्डी है।
कलहंस- उसके पाखण्डीपन को नहीं जानने का कारण राजा का व्यामोह व्याकुलता और घोरघोण का भाग्य है।
राजा- यह युक्तियुक्त है
शरीरधारियों के पूर्वजन्म के प्रारब्ध से प्राप्त सिद्ध किये गये मन्त्र से (जब) अचेतन (निर्जीव) वस्तु भी ( उसके) वश में हो जाती है तो फिर जो चेतनायुक्त हैं उनकी क्या चर्चा?||१९।।
उसके बाद, उसके बाद।
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