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________________ द्वितीयोऽङ्कः ५७ कलहंसः- ततो राजापि कापालिकप्रत्ययेन स्वदुहितरं चित्रसेनाय दातुमिच्छति। राजा- ततस्ततः। कलहंसः- ततो दमयन्त्या मकरिकाऽभिहिता यथा यदि निषधाधिपतिर्लम्बस्तनी कथमप्यनुकूलयति, तदा पुनरपि सा तातं कदा ग्रहान्निवर्तयति, मां च निषधाधिपतये दापयति। राजा- (सत्वरम्) किं पुनर्लम्बस्तनी सहैव नानीता? कलहंसः- आनीताऽस्ति। राजा- क्वासौ? कलहंस:- अस्ति मत्तमयूरोद्याने। राजा- अये शेखर! लम्बस्तनों शीघ्रमाकारय। कलहंस- इसलिए राजा भी कापालिक की सम्मति से अपनी पुत्री दमयन्ती को चित्रसेन को देना चाहते हैं (अर्थात् दमयन्ती का विवाह चित्रसेन से कराना चाहते राजा- उसके बाद, उसके बाद। कलहंस- इसलिए दमयन्ती ने मकरिका से कहा कि यदि निषधाधिपति नल किसी तरह लम्बस्तनी को अनुकूल कर (मना) लें, तो फिर सम्भव है कि वह पिता को पूर्व विचार से निवृत्त भी कर दे और मुझको निषधाधिपति नल के लिए (पिता से) दिला (भी) दे। राजा- (शीघ्रतापूर्वक) तो क्या लम्बस्तनी को साथ में लाये हो? कलहंस- लाया हूँ। राजा- वह कहाँ है? कलहंस- वह (लम्बस्तनी) मत्तमयूर वाले उद्यान में है। राजा- अरे शेखर! लम्बस्तनी को शीघ्र बुलाओ। १. क. कदाग्रहग्रहा.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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