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________________ ५५ द्वितीयोऽङ्कः इह अत्थि घोरघोणो जहत्थनामा कवालिओ एगो। कूरत्तणस्स कवडित्तणस्स पढमं पइट्ठाणं।।१६।। लंबत्थणी त्ति नामं भज्जा तस्सत्थि कुज्जतणुल'ट्ठी। सयलाणं दोसाणं ठाणं दूई य मिहुणाणं।।१७।। राजा-(कलहंसं प्रति) असंस्कृतवागियं मकरिकान स्फुटमर्थमावेदयति। ततस्त्वमेव कथय। कलहंसः- घोरघोणेन च भीमरथाय सन्दिष्टम्, यथेयं दमयन्ती कलचुरिपतेर्भार्या भविष्यति। राजा- (सभयमात्मगतम्) मुषिताः स्मः (प्रकाशम्) स घोरघोणः किमतीन्द्रियमर्थं जानाति? नाम के अनुरूप क्रूरता का तथा वञ्चना (धोखा धड़ी, जालसाजी) का एक मात्र आधार घोरघोण नामक (भयङ्करनासिका वाला होने से यथार्थनामा) एक कापालिक (औघड़) यहाँ (रहता) है।।१६।। समस्त दोषों का निवास स्थान तथा युगल प्रेमी-प्रेमिका को (मिलाने में) दूती (का कार्य करने वाली) कुबड़े शरीर वाली लम्बस्तनी उस कापालिक घोरघोण की पत्नी है।।१७।। राजा- (कलहंस से) प्राकृत बोलने वाली मकरिका की यह वाणी स्पष्ट अर्थ को नहीं कह रही है। इसलिए तुम ही कहो। कलहंस- कापालिक घोरघोण ने राजा भीमरथ को सूचित किया है कि दमयन्ती कलचुरिनरेश की भार्या (अर्थात् दमयन्ती का विवाह कलचुरिनरेश के साथ होगा) होगी। ___ राजा- (भयपूर्वक अपने मन में) तो हम ठगे गये (प्रकट में) क्या वह घोरघोण मनोगत भावों को भी जानता है? १. ख. ग. जट्टी। टिप्पणी- कलचुरि वंश के शासक जहाँ शासन करते थे उस देश को 'चेदि' भी कहा जाता था। जबलपुर से नीचे भरे घर के आसपास विन्ध्य और रिक्ष पर्वतों के मध्य में नर्मदा के किनारे पर स्थित माहिष्मती नगरी में कलचुरि लोग राज्य करते थे। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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