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द्वितीयोऽङ्कः
एतच्च प्रथितं विदर्भतनया यद् विश्वविश्वस्फुर
च्छौर्यादिप्रसरं वरं स्पृहयति ब्रूमः किमन्यत् ततः ? । । १४ । ।
राजा - (स्वगतम्) आः ! किमतः परं राजतनयाऽभिधास्यतीति यत्सत्यमाकुलोऽस्मि । भवतु (प्रकाशम्) ततः किमुक्तवती ?
कलहंस:- राजतनया न किंचित् ।
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राजा - (सखेदमात्मगतम्) हा! हताः स्मः ।
कलहंसः - किन्तु कपिञ्जला नाम विदर्भराजचामरग्राहिणी समीपस्थितेदमुक्तवती ।
राजा - ( ससम्भ्रमम्) किमाह स्म सा ?
कलहंसः - इदमाह स्म सा । अनुरूपं योगं कर्तुमीहते स भगवान् कलहंसः ।
संसार में निर्बाधि गति से फैले हुए (अपने ) शौर्यादि से देदीप्यमान राजा नल को क्या दमयन्ती (अपना) पति चाहती है, (अर्थात् राजा नल को अपने पति के रूप में स्वीकार करती है) तो कहें, या दूसरे को । । १४।।
राजा - ( मन ही मन ) इसके बाद दमयन्ती ने क्या कहा होगा उसे सुनने के लिए मैं व्याकुल हो रहा हूँ। अच्छा (प्रकट में) इसके बाद (उसने) क्या कहा ?
कलहंस- दमयन्ती ने कुछ नहीं कहा।
राजा - ( खेद के साथ मन में) ओह, मैं मारा गया ।
कलहंस - किन्तु कपिञ्जला नाम की भीम नरेश की चाँवर डुलाने वाली (जो) दमयन्ती के समीप स्थित थी उसने यह कहा ।
राजा- (सम्भ्रमपूर्वक) उसने क्या कहा था?
कलहंस- कपिञ्जला ने यह कहा था कि कलहंस रूप-सौन्दर्य में एक समान दोनों नल-दमयन्ती का संयोग करना चाहते हैं।
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