SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नलविलासे राजा- (सत्वरम्) ततस्ततः। कलहंसः- समलङ्कृतासने मयि राजपुत्री सलीलमिदमभिहितवती-स भवान् कलहंसोऽसि? (स्ति?) राजा- अहो! गिरां मधुरिमा। ततः। कलहंसः-मयोक्तम्- यथा जानाति देवी। ततो राजपुत्री 'समासतो विवक्षितमर्थमावेदय' इति निगदिववती। अनन्तरमहमुक्तवान्। राजा- (सौत्सुक्यम्) किमुक्तवानसि? कलहंसः- इदमुक्तवानस्मि। शौण्डीरेषु भयोज्जवलेषु सुभगोत्तंसेषु च ग्रामणीदेवो नैषधभूपतिः श्रुतमिदं स्वर्भूर्भुवो भूरिशः। राजा- (शीघ्रतापूर्वक) उसके बाद, उसके बाद। कलहंस- मेरे आसन पर बैठ जाने के बाद राजपुत्री दमयन्ती ने आनन्द के . साथ यह कहा- तो वह कलहंस आप ही हैं? राजा- अहा,वाणी में कितनी मधुरता है। उसके बाद। कलहंस- मैंने कहा- जैसा देवी जानती हैं वही मैं हूँ। उसके बाद दमयन्ती ने कहा- 'संक्षेप में आप अपने अभीष्ट अर्थ प्रयोजन को कहें'। पश्चात् मैंने कहा। राजा- (उत्सुकतापूर्वक) तुमने क्या कहा? कलहंस- मैंने यह कहा था अभिमानियों में, प्रेम, राग से भयभीतों (अर्थात् योगियों) में, श्रेष्ठ (सुन्दर) अलंकारों में तथा ग्रामवासियों में, अनेक बार यह सुना जा चुका है कि स्वर्ग-लोक, भूलोक और पाताल लोक में, पृथ्वी पालक राजा नल (ही श्रेष्ठ) है, इस प्रकार सम्पूर्ण टिप्पणी- 'शौण्डीर'- “शुण्डा गर्वोऽस्ति अस्य- शुण्डा+ईरन्+अण'। 'भयोज्ज्वल' 'भय'-"दरत्रासौ भीतिर्भी: साध्वसं भयम्" इत्यमरः। 'उज्ज्वल'-- "शृङ्गारः शुचिरुज्ज्वलः' इत्यमरः। “उज्ज्वलो दीप्तशृङ्गार." इति मेदिनी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy