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________________ द्वितीयोऽङ्कः सर्वथा कैतवं निन्द्यं प्रवदन्तु विपश्चितः । केवलं न विना तेन दुःसाधं वस्तु सिध्यति । । ११।। किम्पुरुषः- देव! किमपरमुच्यते ? कामं शाठ्यव्यपोहेन परलोकः प्ररोहतु । इहलोकप्रतिष्ठा तु शाठ्यप' ण्यैव निश्चितम् । । १२ ।। कलहंसः - देव ! निर्मायो यः कृपालुर्यः सत्यो यः सनयश्च यः । प्रायेण तत्र लोकस्य क्लीबबुद्धिर्विजृम्भते । । १३ ।। (यद्यपि) विद्वान् कपट- जालसाजी को हर तरह से निन्दनीय कहें, ( किन्तु ) जालसाजी के बिना निश्चित (ही) दुःसाध्य (विशिष्ट) वस्तु की सिद्धि (प्राप्ति) नहीं हो ( सक) ती है । । ११ । । किम्पुरुष - महाराज ! ऐसा क्यों कहते हैं? भले ही बेईमानी, छल-कपट, जालसाजी आदि को छोड़कर (त्यागकर लोग) स्वर्गलोक जाते हैं, परन्तु इस लोक में सम्मान निश्चित रूप से बेईमानी, छल, कपट, जालसाजी आदि व्यापार से ही मिलता है । । १२ ।। कलहंस- महाराज! जो माया-मोह से रहित है, जो दयावान् है, जो सत्यभाषी है तथा जो नीतिज्ञ है, तो (ऐसे मनुष्य को ) प्राय: इस संसार का नपुंसकमति (दुर्बलमना पुरुषार्थहीन ही ) प्रकाशित किया जाता है ( अर्थात् कहा जाता है ) । । १३ ।। ४९ टिप्पणी- 'कैतवम्'- "कैतवं कपटे” इति वैजयन्ती । "कैतवं तु छले” इति मेदिनी । केवलम्' – “केवलं निश्चिते" इति वैजयन्ती । - Jain Education International टिप्पणी- 'कामम्' – “कामं प्रकामम्" इति इत्यमरः । “कामः स्वरेच्छाकाम्येषु ” इति हैम: । 'शाठ्य' – “कुसृतिर्निकृतिः शाठ्यम्" इत्यमरः । १. क. . पुण्यैव । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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