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________________ ४८ नलविलासे ____ मकरिका- (१) एगदा हरिसिदहिययाए दमयंतीए जंपिदं जथातुमं ज्जेव एगा निसढाहिवइणो इह अत्थि? आदु अन्नो वि को वि? तदो मए भणिदं अन्नो वि सव्वरहस्सट्ठाणां दुदियं पिव हिदयं निसढाहिवइणो पियवयस्सो कलहंसो नाम अत्थि। किम्पुरुषः- मकरिके! वाग्मिनी खल्वसि। सर्वरहस्यस्थानं द्वितीयमिव हृदयं वदन्त्या त्वया रहस्यालापेषु निःशङ्का कृता राजपुत्री। राजा- ततस्ततः। कलहंसः- अस्वस्थशरीरादमयन्तीति प्रघोषं विधाय वैद्यव्याजेनाहमनया विदर्भदुहितुरभ्यर्णं नीतः।। राजा- (सप्रमोदम्) मकरिके! चतुराऽसि विकटकपटनाटकघटनासु। (विमृश्य) मकरिका- एक दिन प्रसत्रचित्त दमयन्ती ने कहा कि लगता तो यही है कि निषधाधिपति के यहाँ एकाकी तुम ही हो? अथवा कोई और दूसरा भी है? तब मैंने कहा सभी रहस्यों का आश्रय द्वितीय हृदय की तरह निषधाधिपति (राजा नल) के प्रिय मित्र भी यहाँ हैं, जिनका नाम कलहंस है। किम्पुरुष- हे मकरिके! तुम बहुत ही चतुर हो। सभी रहस्यों का आश्रय द्वितीय हृदय की तरह (ऐसा) कहकर तुमने दमयन्ती को रहस्य का कथन करने में शङ्कारहित कर दिया। राजा- उसके बाद, उसके बाद। कलहंस- (एक दिन) मकरिका ने दमयन्ती बीमार हो गई है ऐसी घोषणा कर . मुझे एक वैद्य के बहाने विदर्भ नरेश की पुत्री दमयन्ती के भवन में ले गई। राजा- (हर्ष के साथ) मकरिके। कपट का विचित्रअभिनय करने में तुम बहुत चालाक हो। (विचारकर) (१) एकदा हर्षितहृदयया दमयन्त्या जल्पितं यथा-त्वमेवैका निषधाधिपतेरिहासि, अथवाऽन्योऽपि कोऽपि? ततो मया भणितम् अन्योऽपि सर्वरहस्यस्थानं द्वितीयमिव हृदयं निषधाधिपतेः प्रियवयस्य: कलहंसो नामास्ति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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