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________________ द्वितीयोऽङ्कः राजा - ( सत्वरम्) ततस्ततः । कलहंसः - अनन्तरमनया मकरिकया स्वाभिजनद्वारेण कथमप्यात्मनः कन्यान्तःपुरे प्रवेशः कृतः । ४७ राजा - ( सस्पृहम् ) आयुष्मति मकरिके! 'तत्रभवती भवती प्रथमं वैदर्भी दृष्टवती ? मकरिका - (१) अध इं । राजा - ततस्ततः । मकरिका - (२) तदो पडिदिणं सेवाववएसेण दमयंतीपासं गच्छामि, जधावसरं च देवस्स रूव- लावण्ण- विक्कमसमलंकिदं चरिदं विन्नवेमि । राजा - ( सत्वरम्) ततस्ततः । राजा - (शीघ्रतापूर्वक) उसके बाद, उसके बाद | कलहंस- इसके बाद मकरिकाने अपने मातृकुल वालों के माध्यम से किसी प्रकार स्वयं को दमयन्ती के अन्तःपुर में प्रवेश कराया। राजा- ( स्पृहापूर्वक) हे आयुष्मति मकरिके ! आदरणीये आपने ही वहाँ पहिले दमयन्ती को देखा। मकरिका - और नहीं तो क्या ? राजा - उसके बाद, उसके बाद । मकरिका - उसके बाद सेवा के बहाने मैं प्रतिदिन दमयन्ती के समीप जाती थी और मौका पाकर महाराज के रूप लावण्य तथा पराक्रम से युक्त चरित को सुनाती थी। राजा- (शीघ्रतापूर्वक) उसके बाद, उसके बाद । Jain Education International (१) अथ किम् । (२) ततः प्रतिदिनं सेवाव्यपदेशेन दमयन्तीपार्श्व गच्छामि, यथावसरं च देवस्य रूप-लावण्य- विक्रमसमलङ्कृतं चरितं विज्ञपयामि । १ क. तत्रभवती प्र० । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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