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________________ द्वितीयोऽङ्कः विदूषकः - ( सहर्षम् ) (१) किं ताए भणिदं ? मकरिका - (२) एदं भणिदं, सो गद्दहमुहो किं करेदि ? विदूषकः - ( सरोषम् ) (३) हुं सा मं गद्दहमुहं भणदि, ता न तस्स वन्त्रणं सुणिस्सं । कलहंसः - अपरं च । कार्कश्यभूः स्तनतटी न गिरां विलासः केशाः परां कुटिलतां दधते न चेतः । तस्याः कुरङ्गकदृशो नृपचक्रशक्र ! जाड्यं गतौ न तु मतौ विधृतावकाशम् ।। ६ ।। ४३ विदूषक - ( हर्ष के साथ) उसने क्या कहा ? मकरिका - इसप्रकार कहा कि वह गर्दभमुख क्या करता है ? विदूषक - (क्रोधपूर्वक) क्या वह मुझे गर्दभमुख कहती है ? (ठीक है,) तो मैं उसका वर्णन नहीं सुनूँगा । कलहंस - और भी हे राजेन्द्र ! ( उसके ) स्तनों के अग्रभाग की कठोरता (कसापन) वाणी का विषय (अर्थात् शब्दों से व्यक्त) नहीं (किया जा सकता है, तो दूसरी ओर बालों के घुँघरालेपन को हृदय में धारण नहीं (किया जा सकता) है। उस मृगनयनी दमयन्ती (के सौन्दर्य वर्णन में मेरी ) बुद्धि जड़ हो गई किन्तु उसका ( सौन्दर्य वर्णन) समाप्त नहीं हो रहा है ।। ६ ।। Jain Education International (१) किं तया भणितम् ? (२) एतद् भणितम्, स गर्दभमुखः किं करोति ? (३) हुं ! सा मां गर्दभमुखं भणति, ततो न तस्या वर्णनं श्रोष्यामि । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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