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नलविलासे किम्पुरुषः- न केवलमुद्यानं सभां च।
(कलहंस उपसृत्य मकरिकया सह प्रणमति) राजा- (बाहुभ्यामाश्लिष्य) 'अपि कुशलवान् कलहंसः? कुशलवती मकारिका?
कलहंसः- देवस्य प्रतापेन। राजा- (सौत्सुक्यम्) समर्थितमनोरथः समायातोऽसि? कलहंसः- न समर्थितमनोरथः। राजा- हताः स्मः। कलहंस:- किञ्च सम्भावितमनोरथोपायः समायातोऽस्मि।
किम्पुरुष- केवल उद्यान को ही नहीं इस परिषद् को भी प्राप्त किया, अर्थात् इस सभा में भी उपस्थित हैं।
(पास जाकर मकरिका के साथ कलहंस प्रणाम करता है) राजा- (दोनों भुजाओं से आलिङ्गन कर) कलहंस तुम कुशल से तो हो? मकरिका तुम्हारी कुशल तो है?
कलहंस- महाराज के आशीर्वाद से (सब कुशल है)। राजा- (उत्कण्ठा के साथ) मनोरथ का सम्पादन करके आये हो? कलहंस- मनोरथ का सम्पादन करके नहीं (आया हूँ)। राजा- तो मैं मारा गया। कलहंस- पर मनोरथ को सिद्ध करने वाले साधन को लेकर आया हूँ।
टिप्पणी- 'सभा'- सह भान्ति अभीष्टनिश्चयार्थमेकत्र गृहे। “सभा सामाजिके गोष्ठ्यां
द्यूतमन्दिरयोरपि” इति मेदिनी 'किम्पुरुष'- “अथ किम्पुरुषो लोकभेदकिन्नरयोः
पुमान्" इति मेदिनी। १. ख. अयि।
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