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नलविलासे मकरिका- (१) अध इं।
कलहंस:- 'अपि प्रगुणीकृतानि देवस्योपायनीकर्तुं विदर्भमण्डलोद्भवानि वस्तूनि?। मकरिका- (२) सव्वमाचरिदं।
(नेपथ्ये) भो भोः सभाचारिणः! प्रगुणीक्रियतां सिंहासनम्। अहो गन्धर्वलोकाः! प्रारभ्यतां सङ्गीतकम्। इदानीमास्थानमलङ्करिष्यति देवः। कलहंसः- कथमयममात्य; किम्पुरुषो वदति?
(नेपथ्ये) (३) इदो इदो पियवयस्स!।
मकरिका- और नहीं तो क्या?
कलहंस- और भी, महाराज को भेट में देने के लिए विदर्भ देश से प्राप्त वस्तु . को भी सुसज्जित करो। मकरिका- सब कुछ कर चुकी हूँ।
(पर्दे के पीछे) अरे सेवको! सिंहासन को सुसज्जित करो। हे गन्धर्व लोगो! आप सङ्गीत प्रारम्भ करें। अब, महाराज इस स्थान को सुशोभित करेंगे। कलहंस- यह तो अमात्य किम्पुरुष बोल रहा है।
(पर्दे के पीछे) इधर से प्रियमित्र! इधर से।
(१) अथ किम्। (२) सर्वमाचरितम्। (३) इत इतः प्रियवयस्य!
१. ख. अयि। २. क. स्योपनयनी.। ३. ख. .वयस्सो।
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