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________________ द्वितीयोऽङ्कः। (नेपथ्ये) स्वागतं कलहंसाय सपरिच्छदाय। (ततः प्रविशति कलहंस: मकरिकाप्रभृतिश्च परिवारः) कलहंस:- कथं मत्तमयूरोद्यानरक्षकः शेखरोऽस्मदागमनमनुमोदते? (प्रविश्य) शेखरः- आर्य कलहंस! युष्मदागमनोत्कण्ठितोऽतीव देवो वर्तते। तदहं गत्वा निवेदयिष्यामि। (इति निष्क्रान्तः) कलहंस:- अयि मकरिके! कच्चिदिदमभिहिता त्वया लम्बस्तनी? यथा यावद् वयं त्वदागमनं देवाय विज्ञापयामः, तावत् त्वया मत्तमयूरोद्यान एव स्थातव्यम्। (पर्दे के पीछे) परिजन सहित कलहंस का स्वागत है। (इसके बाद कलहंस, मकरिका प्रभृति परिजन का रङ्गमञ्च पर प्रवेश होता है) कलहंस- मतवाले मयूरों वाले उद्यान की रक्षा करने वाला शेखर हम लोगों के आगमन का अनुमोदन क्यों कर रहा है? (रङ्गमञ्च पर प्रवेशकर) शेखर- आर्य कलहंस! आपके आगमन के लिए महाराज अधिक उत्कण्ठित हैं। इसलिए आपके आने का समाचार मैं जाकर महाराज से कहता हूँ। (यह कहकर रङ्गमञ्च पर से चला जाता है) कलहंस- अरी मकरिके! क्या तुमने लम्बस्तनी को यह कह दिया कि जब तक मैं तुम्हारे आने का समाचार महाराज को कहूँ, तबतक तुम्हें मतवाले मयूरों वाले उद्यान में ही रहना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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