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________________ प्रथमोऽङ्कः २७ राजा- (साटरम्) निषधां तुभ्यं पारितोषिकं दास्यामि। भृशमावेदय। मकरिका- (१) भट्टा! एसा विदग्भाहिवइणो भीमरहस्स पुत्तीए दमयंतीए पडिकिदी। राजा- कथं पुनर्जातवती भवती? मकरिका- (२) भट्टा! कुंडिणपुरे मे मादिकुलं। तदहं सव्वं पि विदग्मवुत्तंतं जाणेमि। राजा- (स्वगतम्) सम्भवत्येतत्। उक्तं चानेन कापालिकेन यथाऽहं साम्प्रतं विदर्भमण्डलादायातः। (प्रकाशम्) मुनेः दमयन्तीप्रतिकृतिरियम्? कपालिक:- ब्रह्मचारिणो वयम्, न योषित्कथां प्रथयामः। राजा- (आदर के साथ) तुम्हें मैं निषधदेश ही पुरस्कार में दे दूंगा। शीघ्र कहो। मकरिका- स्वामि! यह विदर्भनरेश भीम-रथ की पुत्री दमयन्ती की प्रतिकृति राजा- यह दमयन्ती की ही प्रतिकृति है यह आप कैसे जानती हैं? मकरिका- स्वामि! कुण्डिन नगरी में मेरा मातृकुल है। इसलिए मैं वहाँ के सभी वृत्तान्तों को जानती हूँ। राजा- (अपने मन में) यह सम्भव है। साथ ही कापालिक ने भी कहा है कि अभी मैं विदर्भ देश से आया हूँ। (प्रकट में) मुने! क्या यह दमयन्ती की प्रतिकृति है? कापालिक- हम ब्रह्मचारी हैं, इसलिए स्त्री विषयक कथा नहीं कहूँगा। (१) भर्तः! एषा विदर्भाधिपतेर्भीमरथस्य पुत्र्या दमयन्त्याः प्रतिकृति। (२) भर्तः! कुण्डिनपुरे मे मातृकुलम्, तदहं सर्वमपि विदर्भवृत्तान्तं जानामि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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