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________________ २६ नलविलासे युवति:- (१) एसा चिट्ठामि । राजा - अयि मकरिके ! वयस्याय प्रसादताम्बूलं प्रयच्छ । मकरिका - ( तथा कृत्वा) (२) भट्टा! किं एदं महया पयत्तेण अवलोईयदि ? राजा - आयुष्मति ! देवताप्रतिकृतिरियम् । मकरिका - (विलोक्य विमृश्य च) (३) भट्टा! न एसा देवयापडिकिदी। राजा - ( ससम्भ्रमम्) तर्हि किमेतत् ? मकरिका - (४) जई में पारितोसिअं किंपि भट्टा 'पयच्छदि, ता कहेमि । युवति- मैं हूँ। राजा - अरी मकरिके! मित्र की प्रसन्नता के लिए इन्हें पान दो । मकरिका - (वैसा ही करके) स्वामिन्! यह क्या है, जिसे आप यत्नपूर्वक देख रहे हैं ? राजा- आयुष्मति ! यह किसी देवाङ्गना की प्रतिकृति है । मकरिका - (देखकर, मन में विचार करके) हे स्वामिन्! यह किसी देवाङ्गना की प्रतिकृति नहीं है। राजा - (सम्भ्रम के साथ) तो यह क्या है ? मकरिका - यदि स्वामी कोई पुरस्कार मुझे दें तो मैं कहती हूँ । (१) एषा तिष्ठामि । (२) भर्तः किमेतत् महता प्रयत्नेनावलोक्यते ? (३) भर्त: ! नैषा देवताप्रतिकृतिः । (४) यदि मे पारितोषिकं किमपि भर्ता प्रयच्छति, तदा कथयामि । १. क. पअच्छदि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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