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नलविलासे
युवति:- (१) एसा चिट्ठामि ।
राजा - अयि मकरिके ! वयस्याय प्रसादताम्बूलं प्रयच्छ ।
मकरिका - ( तथा कृत्वा) (२) भट्टा! किं एदं महया पयत्तेण अवलोईयदि ?
राजा - आयुष्मति ! देवताप्रतिकृतिरियम् ।
मकरिका - (विलोक्य विमृश्य च) (३) भट्टा! न एसा देवयापडिकिदी।
राजा - ( ससम्भ्रमम्) तर्हि किमेतत् ?
मकरिका - (४) जई में पारितोसिअं किंपि भट्टा 'पयच्छदि, ता कहेमि ।
युवति- मैं हूँ।
राजा - अरी मकरिके! मित्र की प्रसन्नता के लिए इन्हें पान दो ।
मकरिका - (वैसा ही करके) स्वामिन्! यह क्या है, जिसे आप यत्नपूर्वक देख रहे हैं ?
राजा- आयुष्मति ! यह किसी देवाङ्गना की प्रतिकृति है ।
मकरिका - (देखकर, मन में विचार करके) हे स्वामिन्! यह किसी देवाङ्गना की प्रतिकृति नहीं है।
राजा - (सम्भ्रम के साथ) तो यह क्या है ?
मकरिका - यदि स्वामी कोई पुरस्कार मुझे दें तो मैं कहती हूँ ।
(१) एषा तिष्ठामि ।
(२) भर्तः किमेतत् महता प्रयत्नेनावलोक्यते ?
(३) भर्त: ! नैषा देवताप्रतिकृतिः ।
(४) यदि मे पारितोषिकं किमपि भर्ता प्रयच्छति, तदा कथयामि ।
१. क. पअच्छदि ।
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