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नलविलासे अशेषाणां मध्ये जलनिधिमणीनां गुणजुषः परं मुक्ता व्यक्तं दधतु हृदि दर्प किमपरैः? अयं यासां मल्लीमुकुलनवदामद्युतिहरः
प्रभातारो हारः स्वपिति सुखमस्याः स्तनतटे।।१८।। किञ्च--
दासस्तस्य गजान्वयार्णवमणेः स्तम्बेरमस्य स्वयं पौलोमीकृतचित्रकर्बुररदः सोऽप्यप्रभूवल्लभः । यहन्तान्तविनिर्मिते प्रचलनप्रेडोलिनी कुण्डले
काण्डीरस्मरपाण्डुगण्डफलकावस्याश्चिरं चुम्बतः।।१९।। (पुन: सविनयम्) मुने! सर्वथा कथय किमिदम्? कापालिक:- प्राणात्ययेऽपि किमसत्यमाभाष्यते?
समुद्र से निकाले गये समस्त मणियों में श्रेष्ठ मुक्तामणि जिस (दमयन्ती) के हृदय में निश्चित रूप से सौन्दर्य दर्प का पोषण करता है (वह) अपनी कान्ति वेग से चमेली की कलियों से निर्मित गजरे की शोभा को तिरस्कृत करता हुआ यह मुक्ताहार इसके स्तनतट पर सुख पूर्वक शयन कर रहा है, (तो किसी अन्य शोभाकारक वस्तु की क्या आवश्यकता?)।।१८।।
और भी,
स्वर्ग तथा भूलोक के पति इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी द्वारा स्वयं, हाथी के गण्डस्थलरूपी समुद्र से निकले मुक्तामणि तथा हाथी दाँत के अन्तिम भाग को, खुरचकर बनाया गया रंग-बिरंगा रुचिकर कर्णाभूषण चलने के कारण उत्पत्र गति से हिलता हुआ इस (प्रतिकृति में चित्रित सुन्दरी) के पीत-रक्त रङ्ग वाले कपोल-प्रदेश का दीर्घकाल तक चुम्बन करता है, जिससे (जो कोई इस सुन्दरी का पति है) इसका वह धनुर्धारी कामदेव भी दास (ही) होगा।।१९।।
(पुन: नम्रता के साथ) कापालिक! वस्तुत: कहें कि यह किसकी प्रतिकृति है? कापालिक- प्राण त्याग करके भी क्या मैं असत्य बोल सकता हूँ?
टिप्पणी- 'स्तम्बरम'- “इभः स्तम्बेरमः' इत्यमरः ।
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