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________________ - २१ प्रथमोऽङ्कः कलहंसः- (परिक्रम्य) किमिदं युध्यमानस्य कापालिनः कक्षातः पतितम्? राजा- (विलोक्य) कलहंस! किमिदम्? कलहंसः-देव! अनेकवस्त्रप्रन्थिनिबद्धा मात्रेयं का पालिनः सम्भाव्यते। राजा- मध्यमवलोकय। (कलहंस: तथा करोति) कापालिक:- (विलोक्य सभयमात्मगतम्) हा! हतोऽस्मि। (युद्धाद् विरम्य प्रकाशमुच्चैःस्वरम्) भो भो! नालोकनीयं मन्मन्त्रपुस्तकम्। कलहंस:- (विलोक्य) कथं वस्त्रान्तरे लेखः? राजा- (गृहीत्वा वाचयति) स्वस्ति। महाराजचित्रसेनं मेषमुखः प्रणम्य विज्ञपयति यथा सर्वमपि युष्मन्मनोरथानुरूपं सम्भाव्यते। इयं च कोष्टकहस्तात् तत्प्रतिकृति होति। कलहंस- (घूमकर) युद्ध करने वाले कापालिक के काँख से यह क्या गिरा? राजा- (देखकर) कलहंस! यह क्या है? कलहंस- महाराज! अनेक वस्त्र से कसकर बाँधे गये इसमें लगता है कि यह शिव का फोटो है। राजा- पूरा खोलकर देखो। (कलहंस वैसा ही करता है) कापालिक- (देखकर भयभीत सा अपने मन में) आह! मैं मारा गया। (युद्ध से विरत होकर प्रकट में जोर से) अरे, अरे! मेरी मन्त्र पुस्तक आप लोगों को नहीं देखनी चाहिये। कलहंस- (देखकर) वस्त्रों की गठरी में यह लेख कैसा? राजा- (लेकर पढ़ता है) कल्याण हो! महाराज चित्रसेन को प्रणाम कर मेषमुख निवेदन करता है कि सभी कुछ आपके मनोरथ के अनुरूप है। और कोष्टक के हाथ से उसका यह छायाचित्र ग्रहण करें। १. ख. कपा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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