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नलविलासे
कलहंसः - (विहस्य) मुने! महोपाध्यायोऽसौ निषधायां तदमुना भगिनीपतिना भवद्भिर्न लज्जितव्यम् ।
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कापालिक :- ( सरोषम् ) सम्पदापि निवेदितमस्य महोपाध्यायत्वम् । राजा - (स्मित्वा) अल्पसम्पत्तिकत्वमहेतुरमहोपाध्यायत्वे । अल्पवेतना हि विद्याजीविनः प्रायेण
देवीं वाचमविक्रेयां विक्रीणीते धनेन यः । क्रुद्धेव तस्मै सा मूल्यमत्यल्पमुपढौकयेत्।। १४ ।। कापलिक:- (सोपहासम् ) किमभिधानोऽयं महोपाध्यायः ? राजा - खरमुखाभिधानोऽयम् ।
कापालिक :- (सोपहासम् ) आकारानुरूपमभिधानम् । राजा - मुने! किमभिधानमलङ्करोषि ? |
कलहंस- (हँसकर) मुने! ये निषधदेश के महोपाध्याय हैं, अतः बहनोई होने के कारण इनसे आप लज्जित हों ।
कापालिक सम्पत्ति से भी इसका महोपाध्यायत्व प्रकट हो जाता है।
राजा
(हँसकर) अल्प सम्पत्ति होना अमहोपाध्यायत्व का कोई कारण नहीं है, क्योंकि अल्प वेतन प्राप्त करने वाले भी प्रायः विद्यादान करते हैं।
जो (कोई ) नहीं बेचने योग्य सरस्वती देवी की वाणी विद्या को धन से बेचता है, तो वह (सरस्वती देवी) क्रुद्ध होकर उसे अत्यल्प धन की प्राप्ति कराती है ।। १४ ।। कापालिक - ( उपहास के साथ) ये महोपाध्याय किस नाम को अलंकृत करते
हैं ?
राजा- ये
खरमुख नाम से जाने जाते हैं।
कापालिक - (उपहास पूर्वक) आकृति के अनुरूप नाम है।
राजा- मुने! आप किस नाम को अलंकृत करते हैं?
टिप्पणी- 'विक्रीणीते' क्री का अर्थ खरीदना होता है, परन्तु 'वि' उपसर्ग पूर्वक 'क्री' का अर्थ 'बेचना' होता है। ऐसी परिस्थिति में “परि-व्यवेभ्यः क्रिय: १/३/१८ ||" इस से धातु आत्मनेपदी होता है।
सूत्र
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