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________________ प्रथमोऽङ्कः राजा- कियदवधिगमनम्? कापालिक:- जीवितावधि। राजा- (स्वगतम्) वचनशठस्तापसच्छद्मा चर इव लक्ष्यते। (प्रकाशम्) देशावधिं पृच्छामि। कापालिक:- नवनवतीर्थदर्शनश्रद्धालूनां तपस्विनांकुत एवदेशावधिः। राजा- (स्वगतम्) नियतमयं चरः। अनुचितमाचरितमस्माभिर्यदस्मिन्ननावृते वने समीपीकृतः। कदाचिदयं घातकोऽपि स्यात्। भवतु तावत्। (प्रकाशम्) कुतो भवति दीक्षासक्रमः? कापालिक:- रामगिरिनिवासिनः कापालिकचूडामणेश्चन्द्रशेखरात्। विदूषकः-(१) दिट्ठिया महं सालो समागदो। सो खलु चंदसेहरो मह बंभणीए पिआ। राजा- कहाँ तक जाना है? कापालिक- जीवनपर्यन्त। राजा- (मन ही मन) धूर्ततापूर्ण वचन से तो यह कपटवेषधारी तपस्वी दूत की तरह लगता है। (प्रकट में) किस देश तक जाना है यह पूछता हूँ। कापालिक- नये-नये तीर्थस्थान के दर्शनाभिलाषी श्रद्धालु तपस्विजन को किसी देश से क्या प्रयोजन। .. राजा- (अपने मन में) निश्चित रूप से यह दूत ही है। इस असुरक्षित वन में इसको अपने पास बुलाकर हमने अनुचित कार्य किया। यह तो मारने वाला भी हो सकता है। तो जो हो। (प्रकट में) आपने किससे दीक्षा प्राप्त की है। कापालिक- रामगिरि पर निवास करने वाले कापालिकों में श्रेष्ठ चन्द्रशेखर से। विदूषक- भाग्य से मेरा साला आ गया है, क्योंकि वह चन्द्रशेखर तो मेरी पत्नी के पिता हैं। (१)दिष्ट्या मम श्यालः समागतः। स खलु चन्द्रशेखरो मम ब्राह्मण्या: पिता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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