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नलविलासे कोऽत्र भो? निवेद्यतां निषधाधिपतयेऽस्मदागमनम्। राजा- (समाकर्ण्य) वयस्य! विलोकय गत्वा कोऽयम्। विदूषकः(१) जं आणवेदि भवं
(इत्यभिधाय निष्क्रम्य, ससम्भ्रमं प्रविश्य) भो लहुं उत्थेहि उत्थेहि, जेण पलायम्ह। राजा- विश्रब्धमभिधीयतां किं भयस्य कारणम्। विदूषकः- (२) एगो पिसाओ दुवारे चिट्ठदि।
राजा- असम्भावनीयोऽयमर्थः। कुतो नामात्र भगवधुगादिदेवतायतनपावने वने पिशाचानां सम्भवः?
विदूषकः- (सरोषम्) (३) युगादिदेवावटुंभेण तुझे इह ज्जेव चिट्ठध।
अरे! यहाँ कोई है? राजा नल से मेरे आगमन का समाचार कहो। राजा- (सुनकर) मित्र! जाकर देखो कि यह कौन है? विदूषक- आपकी जो आज्ञा।
(यह कहकर जाकर के, पुनः घबराहट के साथ प्रवेश कर) अरे! उठो, शीघ्र उठो जिससे भाग चलें। राजा- शान्त होकर कहो कि भय का क्या कारण है? विदूषक- दरवाजे पर एक पिशाच खड़ा है।
राजा- यह तो सर्वथा असम्भव है। भगवान् युगादिदेव के मन्दिर से पवित्र इस उद्यान में पिशाच का होना कैसे सम्भव है?
विदूषक- (क्रोध के साथ) युगादिदेव के सहारे तुम लोग यहीं ठहरो।
(१) यदाज्ञापयति भवान्। भो! लघूत्तिष्ठोत्तिष्ठ, येन पलायामहे। (२) एकः पिशाचो द्वारे तिष्ठति। (३) युगादिदेवावष्टम्भेन यूयमिहैव तिष्ठत।
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