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________________ नलविलासे राजा- (समन्ततो विलोक्य) दात्यूहकुक्कुभकपिञ्जलचक्रवाकसारङ्गभृङ्गकलकूजितमञ्जुकुञ्जाः। उद्यानकेलिसरसीनवफुल्लमल्लीवल्लीगृहाङ्गणभुवो रमयन्ति चेतः।।१२।। (प्रविश्य) प्रतीहारः- देव! निषधाधिपते! एको ब्राह्मणो द्वारि वर्तते। राजा- (स्वागतम्) नैमित्तिकः खल्वयम्। (प्रकाशम्) वयस्य! क्षणमेकमिदानीं मङ्गलाभिधायिना भवता भाव्यम्। विदूषकः- (सरोषम्) (१) किं अहं तए सव्वदा अमंगलभासगो जाणिदो? ता न इत्थ चिट्ठीस्सं। (इति गन्तुमिच्छति) राजा- वयस्य! न गन्तव्यम्। राजा- (चारों तरफ देखकर) जल-कुक्कुट, जंगली मुर्गा, पपीहा, चक्रवाक, कोयल तथा भौरों के कलरव से मनोहर लता समूह, क्रीड़ा-वाटिका का सरोवर (तथा) नवीन खिली हुई चमेली लताओं से निर्मित घर के आँगन की भूमि चित्त को आनन्दित कर रही है।।१२।। (प्रवेश करके) प्रतीहार- हे महाराज निषध देश के स्वामि! द्वार पर एक ब्राह्मण (खड़ा) है। राजा- (मन ही मन) निश्चित रूप से यह (ब्राह्मण) नैमित्तिक है। (प्रकट में) मित्र! अब कुछ देर के लिए आप मङ्गलभाषी बनें। विदूषक- (क्रोध के साथ) तो क्या (अबतक) मैं तुम्हारे द्वारा हमेशा अमङ्गलभाषी ही जाना गया? तो मैं यहाँ नहीं ठहरूँगा (यह कहकर जाना चाहता है)। राजा- मित्र! मत जाओ। .: (१) किमहं त्वया सर्वदाऽमङ्गलभाषको ज्ञातः ततो नात्र स्थास्यामि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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