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प्रथमोऽङ्कः नटः- पुराप्ययमों 'जातोऽस्ति। किन्तु परमं गृहाधिपत्यमवाप्य साम्प्रतं सा कर्मकरवृत्त्या तिष्ठतीति नटी विषादमुद्वहति। सूत्रधारः- (साक्षेपम्) मारिष! मारिष! त्वमप्येवमभिदधासि! ननु
अकृताखण्डधर्माणां पूर्वे जन्मनि जन्मिनाम्। सापदः परिपच्यन्ते गरीयस्योऽपि सम्पदः।।१०।।
(नेपथ्ये) वयस्य कलहंस! परमेश्वरस्य युगादिदेवस्य सपर्यया वयमतीव श्रान्ताः। तदादेशय खरमुखम्। येनास्मद्विश्रामहेतुं सच्छायं कमप्युद्यानप्रदेशमवलोकयति।
सूत्रधारः- (समाकर्ण्य) कथं नलनेपथ्यधारी नटो वदति? तदेहि मारिष! वयमप्यनन्तरकरणीयाय सज्जीभवाम।
(इति निष्क्रान्ती)
हुई थी। परन्तु अब तो वह मात्र एक दाई के रूप में रह रही है, इसीलिए हमारी पत्नी खिन्नमना है।
सूत्रधार- (आक्षेपपूर्वक) आर्य! तुम भी ऐसा कह रहे हो। निस्सन्देह
जिन देहधारियों के द्वारा पूर्व जन्म में अखण्ड धर्म नहीं किया गया है उनकी विशाल सम्पत्तियाँ भी विपत्ति का कारण ही होती हैं।।१०।।
(नेपथ्य में) मित्र कलहंस! भगवान् युगादिदेव की पूजा से हम अत्यन्त थक चुके हैं, इसलिए खरमुख को आदेश दो, जिससे वह हमारे विश्राम के लिए घनी छाया वाले उद्यान के किसी भाग को देखे।
सूत्रधार- (सुनकरके) अरे, यह तो नलवेषधारी नट बोल रहा है? इसलिए आर्य! आओ, हमलोग भी अगला कार्य करने के लिए तैयार होवें।
(ऐसा कहकर दोनों निकल जाते हैं)
१. ज्ञातो।
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