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नलविलासे
सूत्रधार :- हुं ! कुन्तला भर्त्रा गृहान्निर्वासिता ?
नटः - अथ किम् ।
सूत्रधारः - (विमृश्य) अवद्यं किमप्युद्भाव्य उताहो मुधैव ?
नटः -- मुधैव ।
सूत्रधारः - अनवसरस्तर्हि विषादस्य । किञ्च कृतेनापि विषादेन सा गृहप्रवेशं न लभते । यतः -
न स मन्त्रो न सा बुद्धिर्न स दोष्णां पराक्रमः । अपुण्योपस्थितं येन व्यसनं प्रतिरुध्यते । । ९ ।।
यदि च सा निरवद्या, तदा तां पुनरपि पतिः सम्भावयिष्यति ।
सूत्रधार - क्या, कुन्तला पति के द्वारा घर से निकाल दी गई ? और नहीं तो क्या ?
नट
सूत्रधार - ( मन में विचार कर) अच्छा, तो कोई दोष दिखाकर वह निकाली गई या व्यर्थ ही ?
नट - बिना दोष दिखाये ही निकाल दी गई।
सूत्रधार - तब तो उसके विषादग्रस्त होने का कोई औचित्य नहीं है । और उसके विषादग्रस्त होने से भी पुत्री कुन्तला अपने पति के घर में प्रवेश प्राप्त नहीं कर सकती है। क्योंकि
न तो ऐसा कोई मन्त्र है, न तो ऐसी कोई बुद्धि है और न तो भुजाओं का ऐसा कोई पराक्रम ही है, जिसके द्वारा पाप से उपस्थित पीड़ा (कष्ट) को रोका जा सकता है ।।
।।९।।
और यदि वह दोषरहित है, तो पुनः उस (कुन्तला ) के पति उसका सम्मान करेंगे (उसे स्वीकार कर लेंगे)।
नट - (आर्य!) इस प्रकार की घटना पहले भी घट चुकी है । किन्तु तब की बात कुछ और थी, क्योंकि उस समय छोड़ दिये जाने पर भी वह गृहस्वामिनी बनी
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