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________________ प्रथमोऽङ्कः अपि च शपथप्रत्येयपदपदार्थसम्बन्धेषु प्रीतिमादधानं जनमवलोक्य जातखेदेन तेनेदं चाभिहितम् स्पृहां लोकः काव्ये वहति जरठैः कुण्ठिततमैर्वचोभिर्वाच्येन प्रकृतिकुटिलेन स्थपुटिते । वयं वीथीं गाढुं कथमपि न शक्ताः पुनरिमामियं चिन्ता चेतस्तरलयति नित्यं किमपि नः ।।८।। नट: - (क्षणं विमृश्य) भाव! अद्य नटी विषादिनी । सूत्रधार :- जानासि किमपि विषादस्य कारणम् ? नट:- जानामि । या भवत्पुत्री कुन्तला नाम सा भर्त्रा स्वगृहान्निर्वासिता । है कि कुमुद चन्द्रमा के सम्पर्क से ही खिलता है, किन्तु कुमुद तो चन्द्रमा से रहित अमावास्या की रात में भी खिलता है, (इसलिए लोगों की बात विश्वसनीय नहीं है ) ।।७।। और भी, प्रतिज्ञापूर्वक जानने के योग्य पद-पदार्थ के सम्बन्ध में ही प्रीति रखने वाले जन ( कवि समूह) को देख खिन्न होकर उन्होंने ( कवि रामचन्द्रसूरि ने ) कहा भी इस लोक में (प्राय: कवि) काव्य में (वर्णनीय वस्तु की) प्रबल इच्छा को अर्थाभिव्यक्ति में अशक्त वाणी के द्वारा (काव्य में) कहे जाने योग्य वर्णनीय वस्तु की नैसर्गिक स्थिति को वक्रता के द्वारा चित्रित कर (काव्य में) परिपक्वता लाते हैं, परन्तु हम उस मार्ग का अवगाहन करने में किसी प्रकार से भी समर्थ नहीं हैं। यही चिन्ता हमारे चित्त (हृदय) को हमेशा कुछ विचलित करती रहती ) है | |८| नट - (क्षणभर अपने मन में विचारकर) आर्य! आज नटी (हमारी पत्नी) विषादग्रस्त है। सूत्रधार - उसके विषाद का कोई कारण जानते हो ? नट - जानता हूँ। कुन्तला नामक जो तुम्हारी पुत्री है वह अपने पति के द्वारा घर से निकाल दी गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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