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________________ नलविलासे सूत्रधारः- मारिष! मा शतिष्ठाः श्रुतीनां पीयूषं कविकुलगिरां कीर्तिपटहो रसापीतेः पात्रं रघु-यदुचरित्रं विजयते। परं किञ्चित् किञ्चिन्नलललितमप्येतदमृत स्रवन्ती श्रोतॄणां श्रवसि विनिधातुं प्रभवति।।६।। नटः-(विमृश्य) भाव! अयं कविः स्वयमुत्पादक उताहो परोपजीवकः? सूत्रधार:- अत्रार्थे तेनैव कविना दत्तमुत्तरम् जनः प्रज्ञाप्राप्तं पदमथ पदार्थ घटयतः परध्वाध्वन्यान् नः कथयतु गिरां वर्तनिरियम्। अमावास्यायामप्यविकलविकासीनि कुमुदा न्ययं लोकश्चन्द्रव्यतिकरविकासीनि वदति।।७।। सूत्रधार- आर्य! शंका करने की कोई आवश्यकता नहीं है श्रुतियों में अमृत, कवियों की वाणी का यश रूपी नगाड़ा, रस पीने का पात्र स्वरूप रघुवंशी एवं यदुवंशियों का चरित (तो) सर्वोत्कृष्ट है ही, परन्तु शृङ्गारादि रसों (की योजना) से सुन्दर बना हुआ नलचरित अमृत बहाती हुई (कवि की) वाणी (को) श्रोताओं के कानों में स्थापित करने में समर्थ है।।६।। नट- (मन में विचार करके) आर्य! ये जो कवि रामचन्द्रसूरि हैं, उन्होंने स्वयम् इस ‘नलविलास' नामक कृति को बनाया है अथवा किसी दूसरे (कवि) की (कृति) की सहायता ली है? सूत्रधार- इसी का निराकरण करने के लिए तो कवि रामचन्द्रसूरि ने स्वयं कहा (यद्यपि) हम अपनी बुद्धि में प्रस्फुटित नवीन पद-पदार्थों की रचना करते हैं (फिर भी) लोग (हमें) दूसरों के मार्ग का अनुगमन करने वाला ही कहते हैं तो कहें, ऐसा तो संसार में कहा ही जाता है, (क्योंकि) लोगों के द्वारा यह भी कहा जाता टिप्पणी- 'अमावास्या'- अमा सह वसत: चन्द्र-सूर्यो यस्यां तिथौ सा अमावास्या। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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