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नलविलासे समादिष्टो नाट्ये निखिलनटमुद्रापटुरहं प्रसन्न. सभ्यानां कटरि! भगवानेष स विधिः।।२।।
तद् गृहं गत्वा रङ्गोपजीविनः प्रगुणयामि (इति परिक्रामति। पुरोऽवलोक्य) कथमयमित एवाभिपतति वयस्यो मन्दारः!
(प्रविश्य) नट:- भाव! दत्तः कोऽपि सामाजिकैरभिनयादेशः?
सूत्रधा :- दत्तः श्रीमदाचार्यहेमचन्द्रस्य शिष्येण रामचन्द्रेण विरचितं नलविलासाभिधानमाद्यं रूपकमभिनेतुमादेशः।
नट:- भाव! एतस्यां रामचन्द्रकृतौ सम्भाव्यते कोऽपि सामाजिकानां रसास्वादः
सूत्रधार :- मारिष! सम्भाव्यत इति किमुच्यते? यत:
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अत: मैं घर में जाकर रङ्गमञ्च पर अनुकार्य के क्रिया कलापों का अनुकरण करने वाले अन्कर्ताओं (नटों) को तैयार करता हूँ (यह कहकर घूमता है। सामने देखकर) अरे, यह तो मन्दार नामक मेरा मित्र इधर ही आ रहा है।
रङ्गभूमि में प्रवेश करके) नट- हे आर्य! क्या सामाजिकों (सहृदयों) ने अभिनय करने का आदेश दिया?
सूत्रधार- हाँ, श्रीहेमचन्द्राचार्य के शिष्य कवि रामचन्द्रसूरि रचित नलविलास नामक कृति (दृश्यकाव्य), जो रूपकों का आदि भेद, अर्थात् नाटक है उसका अभिनय करने का आदेश दिया है।
नट- आर्य! कवि रामचन्द्रसूरि की कृतियों में सामाजिक (सहृदयों) के लिए रसास्वादन की कोई सम्भावना है?
सूत्रधार- आर्य! अरे, सम्भावना है इस प्रकार से क्यों कह रहे हो? क्योंकि
नवीन कल्पना और उक्तियों से मधुर काव्यों की रचना करने वाले आलस्यरहित मुरारि आदि न जाने कितने कवि हुए हैं, पर नाट्य के प्राणभूत रसों को चरमोत्कर्ष
टिप्पणी- 'कटरि'- आश्चर्य या प्रशंसा अर्थों का द्योतक अव्यय।
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