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________________ ।।श्रीः।। श्रीरामचन्द्रसूरिविरचितं नलविलासम्। वैदर्भीरीतिमहं लभेय सौभाग्यसुरभितावयवाम्। दमयन्तीवैरस्यं दिशति गिरां या परां लक्ष्मीम्।।१।। (नान्द्यन्ते) सूत्रधार':- (सप्रमोदम्) कविः काव्ये रामः सरसवचसामेकवसतिनलस्येदं हृद्यं किमपि चरितं धीरललितम्। नलवियोगजन्य दमयन्ती का जो औदासीन्य है (उसका वर्णन करने के लिए) मैं (कवि रामचन्द्रसूरि) शृंगार, हास्य और करुण रस से सुगन्धित (सुसज्जित) पदों वाली वैदर्भीरीति को प्राप्त करूँ, जो कवि की वाणी को अत्यन्त शोभा देती है।।१।। (नान्दी के बाद) सूत्रधार- (हर्षके साथ) काव्य में शृंगारादि रसों से युक्त वाणी (वाक्यों) के एकमात्र आधार कवि रामचन्द्रसूरि ही हैं तथा नल कृत यह धीरललित चरित (भी) अनिर्वचनीय रूप से मनोहर है। अभिनय के लिए आदेश प्राप्त कर चुका मैं समस्त नट-अभिनय कला में पूर्ण दक्ष हूँ। (अत:) सहृदयों के ये अर्थात् सामने उद्यान में स्थित जो युगादिदेव हैं वे प्रसन्न हों (सम्पति हम लोगों के लिए) यही करणीय है।।२।। - टिप्पणी : १. 'सूत्रधार' 'नाट्योपकरणादीनि सूत्रमित्यभिधीयते। सूत्रं धारयते यस्तु सूत्रधारः स उच्यते।।" नाट्य के उपकरणों को सूत्र कहते हैं और उसका व्यवस्थापक सूत्रधार शब्द से अभिहित होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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