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________________ xxxi भूमिका आवश्यक होते हुए भी इतना विस्तृत है कि अभिनय की दृष्टि वह उपेक्षा है। क्योंकि प्रत्येक अङ्क के अभिनय का जो समयमान है, उसमें इसका समावेश कर पाना असम्भव है। द्वितीय यह कि ऋतुपर्ण के साथ सपर्ण, जीवलक तथा बाहुक रूप में उपस्थित नल के समक्ष उक्त अभिनय के द्वारा जहाँ नाटकीय मुख्य रस का पोषण किया गया वहीं विमर्शसन्धि की रक्षा की गई है। साथ ही सामाजिक दृष्टि से यह स्पष्ट कर दिया गया है कि- नल के साथ दमयन्ती का पुनर्मिलन निकट भविष्य में होने वाला है, क्योंकि इस कथानक से पूर्व दमयन्ती मिलन की आशा क्षीण हो गयी थी। इसी प्रकर मूल कथा में वर्णित नलान्वेषण हेतु दमयन्ती द्वारा ऋतुपर्ण के यहाँ सुदेव नामक ब्राह्मण को भेजकर यह कहना कि कल सूर्योदय से पूर्व दपयन्ती अपने दूसरे पति का वरण करेगी अत: इससे पूर्व आप (ऋतुपर्ण) वहाँ निश्चित पहुँचेंइस मूल कथा की यथा स्थिति बनाये रखते हुए भी कवि ने विदर्भदेश को जा रहे सारथि रूप में नल और ऋतुपर्ण के बीच बहेड़े के वृक्ष आदि का विस्तृत प्रसङ्ग इसलिए छोड़ दिया कि नाटकीय आख्यानवस्तु में उसकी योजना का कोई औचित्य नहीं है। क्योंकि इससे नाटक का मुख्य प्रयोजन ही ओझल हो जाता। दूसरा यह कि अंक में दूर-देश गमनादि वृत्तान्त अप्रदर्श्य हैं। तथा राजा ऋतुपर्ण और सार थे बाहुक के साथ जीवलक के विदर्भ आगमन पर राजा भीम द्वारा राजा ऋतुपर्ण के आगमन का समाचार पूछे जाने के बाद का यह कथा भाग- दमयन्तो द्वारा केशिी को बाहुक के पास भेजकर पर्णाद को कहे गये वचन को उससे पुनरावृत्ति करवाने से लेकर नल द्वारा बनाये गये मांस को केशिनी से मंगवाकर दमयन्ती का खाना तथा मता से आज्ञा लेकर दमयन्ती का नल के पास जाना, वहाँ जाकर अपन पूर्वोक्त प्रश्नों को बाहुक से पूछना रूपी अंश को बदलकर कवि द्वारा इसको इस रूप में प्रस्तुत करना कि-- नगर के समीप दधिपर्ण (ऋतुपर्ण) के साथ नल (बाहुक) जब पहुँचत है तो नगर में लोगों का इधर-उधर भागना किसी अनिष्ट की आशंका से दधिपर्ण (ऋतुपर्ण) द्वारा नल से अयोध्या नगरी लौट जाने के लिए कहना, यह सुनकर नल का यह कथन कि इसके विषय में जब तक मैं अच्छी प्रकार से जान लेता हूँ, तब तक आप यहीं ठहरें। तत्पश्चात् एक वृद्ध ब्राह्मण को मार्ग में आता हुआ देखकर उसके समीप नल का जाना और उस कोलाहल के विषय में पूछना, ब्राह्मण से यथास्थिति जानकर उस स्थान को जाना जहाँ कलहंस, कपिञ्जला और मकरिका के साथ खड़ी मयन्ती द्वारा नल मिलन की आशा के नष्ट हो जाने से लगायी गई चिता में अग्नि प्रज्वलित करके उसमें प्रवेश कर अपना जीवन समाप्त करने की इच्छा व्यक्त करना, यह देखकर नत द्वारा ऐसा सोचना कि सर्वनाश उपस्थित हो गया, पुनः चिता में प्रवेश करने का कारण पूछना तथा उक्त विषय में दमयन्ती द्वारा नल को बताना इस आख्यानवस्तु को प्रस्तुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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