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भूमिका
xxix दमयन्ती को देखकर कुछ लोगों का भय से इधर-उधर भागना तथा कुछ लोगों का उसके प्रति सहानुभूतियुक्त होना, उनके द्वारा दमयन्ती के विषय में पूछना, दमयन्ती द्वारा अपना परिचय देना तथा यह पूछे जाने पर कि आप लोग कहाँ जा रहे हैं यह पूछना, उन लोगों के गन्तव्य स्थान को जानकर सार्थवाहों के साथ चेदिदेश जाने का दमयन्ती द्वारा निश्चय करना तथा रात्रि में वन के मध्य सरोवर के समीप निद्रावस्था में वहाँ आये हुए हाथियों के द्वारा लोगों को मारा जाना, प्रातः काल यह देखकर दमयन्ती तथा बचे लोगों की खित्रता और उन बचे लोगों के साथ दमयन्ती का चेदिदेश को प्रस्थान करना, वहाँ पहुँचने के बाद बालकों से घिरी दमयन्ती का रनिवास के समीप पहुँचना, उसे उस अवस्था में देखकर राजमाता द्वारा रनिवास में बुलाना, उसकी यथास्थिति को जानकर उसे राजभवन में रहने के लिए कहना, यह सुनकर दमयन्ती द्वारा अपने निमित्त राजमाता से प्रतिज्ञा करवाना, तत्पश्चात् नल और दमयन्ती के विषय में पूर्वघटित घटना को जानकर भीमनरेश द्वारा नल और दमयन्ती का अन्वेषण करने के लिए ब्राह्मणों को सभी दिशाओं में भेजना, इसी क्रम में सदेव नामक ब्राह्मण का चेदिदेश पहुँचना वहाँ दमयन्ती को पहचान कर अपना परिचय देना, दोनों का परस्पर वार्तालाप तथा दमयन्ती के विलाप के विषय में सुनकर राजमाता द्वारा सुदेव से उसका तथा उस दीन-दशा को प्राप्त हुई स्त्री के विषय में पूछना, सुदेव से यथास्थिति का ज्ञान प्राप्त कर राजमाता का अधिक प्रसन्न होना तथा दमयन्ती को अपना परिचय देते हुए कि मैं तुम्हारी मौसी हूँ यह कहना, पश्चात् दमयन्ती द्वारा विदर्भदेश जाने की इच्छा व्यक्त करने पर चेदिनरेश की आज्ञा से विशाल सेना से घिरी दमयन्ती का विदर्भदेश पहुँचना, विदर्भदेश पहुँचकर माता की आज्ञा से नल का अन्वेषण कराने के लिए ब्राह्मणों को अपना कथन कह कर ब्राह्मणों से गाते हए (दमयन्ती ने जो कुछ कथन कहकर ब्राह्मणों से गाते हुए विभिन्न दिशाओं में जाने के लिए कहा था उसे मूलकथा में वर्णित किया जा चुका है, इसिलए उस कथन को मूलकथा में ही देखना चाहिए) विभिन्न दिशाओं में भेजना, उन्हीं में से पर्णाद नामक ब्राह्मण का अयोध्या पहुँचना, उस पर्णादके मुख से दमयन्ती के कथन को सुनकर बाहुक (नल) का उसे उत्तर देना, यह उत्तर पाकर दमयन्ती द्वारा उस बाहुक के विषय में नल का अनुमान करना रूपी मूल कथा को कवि द्वारा इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है
मूलकथा में वर्णित वन में दमयन्ती का परित्याग करके बाहुक रूप में राजा नल अयोध्यानरेश दधिपर्ण (ऋतुपर्ण) की नगरी में पहुँचते हैं। एक दिन राजा दधिपर्ण (ऋतुपर्ण) की आज्ञा से नटों ने नल दमयन्ती विषयक आख्यानवस्तु का अभिनय प्रारम्भ किया। इस अभिनय को देखने के लिए सपर्ण और जीवलक के साथ राजा दधिपर्ण (ऋतुपर्ण) जब सभा मण्डप में पहुँचे, तो उन्होंने उस अभिनय को देखने के लिए बाहुक को भी आमन्त्रित किया। बाहुक राजा दधिपर्ण (ऋतुपर्ण) की इच्छानुसार
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