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________________ भूमिका xxvii उस छाया प्रतिकृति के दर्शन के बाद राजा नल कलहंस नामक मित्र के साथ विदर्भदेश की भाषा को जानने वाली मकरिका को विदर्भदेश इसलिए भेजते हैं कि वे दोनों वहाँ जाकर दमयन्ती से वार्तालाप के प्रसङ्ग में उसके मनोगत भावों को जानें कि वह दमयन्ती राजा नल से विवाह करना चाहती है या उसने किसी दूसरे को अपना पति बनाने का निश्चय किया है। साथ ही यदि उसने किसी को मन से अपना पति नहीं माना है और मुझसे विवाह करना चाहती है, तो वह कौन सा साधन है जिसके द्वारा दमयन्ती रूपी स्त्री - रत्न की प्राप्ति मुझे होगी । यहाँ मूल कथाभाग में इस रूप से परिवर्तन इसलिए किया गया है कि नाटक का उद्देश्य है पुरुषार्थ चतुष्टय को प्राप्त कराके प्रवृत्ति - निवृत्ति का उपदेश देना । इन्द्रादिदेव दिव्यपात्र हैं। उनके चरित्र का वर्णन करने में यह कठिनाई होगी कि मर्त्यचरित न होने के कारण उन सुख-दुःखात्मक संवेदनाओं का सामाजिक में प्रतिफलन नहीं होगा। दिव्य पात्रों में दुःख का अभाव होता है। अतः ऐसे चरित के निबन्धन से नाट्य में दुःख दूर करने के लिए प्रतिकार भी नहीं होगा। साथ ही दिव्यपात्र इन्द्रादि का मर्त्यलोक में रहने वाली दमयन्ती को प्राप्त करने की अभिलाषा का वर्णन करने से उनकी दिव्यता का फल क्या होगा ? क्योंकि दिव्यपात्र तो अलौकिक शक्तिसम्पन्न होते हैं। अलौकिक शक्ति सम्पन्न होने के कारण देवताओं को दुष्प्राप्य वस्तुओं की प्राप्ति इच्छामात्र से हो जाती है। अतः उनके चरित्र के अनुसार आचरण सम्भव न होने से वह मनुष्यों के लिए उपदेश योग्य नहीं हो सकता । अतः नाटकीय आख्यान वस्तु की सरसता और प्रभविष्णुता को ध्यान में रखकर ही मूलकथा भाग को कवि द्वारा इस रूप में बदला गया है। तथा नाटक के प्रधान नायक को किसी का दूत रूप प्रस्तुत करने से नाटकीय आख्यानवस्तु का वह अंश प्रधान नायक के उदात्तचरित का अपकर्षक है। कहा जा चुका है कि दिव्यपात्र अलौकिक शक्ति सम्पन्न होते हैं। इच्छा मात्र से उन्हें दुष्प्राप्य वस्तु की प्राप्ति हो जाती है। इसीलिए कलि और द्वापर की दिव्यता को ध्यान में रखकर कलि द्वारा नल के राज्यभ्रंश रूपी वृत्तान्त को बदल कर कलचुरिपति चित्रसेन के साथ दमयन्ती का विवाह कराने की इच्छा वाले चित्रसेन का अनुचर कापालिक घोरघोण एवं लम्बोदर नामक कापालिक रूपी वृत्तांश की कल्पना कवि ने की है। और उस कापालिक घोरघोण की प्रतिज्ञा थी कि चित्रसेन के अतिरिक्त जो कोई दमयन्ती से विवाह करेगा मैं उसके राज्य को नष्ट कर दूँगा, जिसके फलस्वरूप राजा नल के राज्य का भ्रंश हुआ। इसी प्रकार नलविलास नाटक में मूलकथा में वर्णित द्यूतक्रीड़ा में प्रवृत्त नल का राज्य हार जाने रूपी मूलकथांश को बदलकर राजा नल के पुत्र युवराज कूबर द्वारा द्यूतक्रीड़ा में राज्य हार जाने रूपी इतिवृत्त की कल्पना कवि ने की है। क्योंकि धीरोदात्त नायक को दुर्व्यसनी रूप में प्रस्तुत करना नाट्य- नियमों की दृष्टि से अनुचित है। तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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