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________________ XXvi नलविलासे वर्णित हैं। धीरोदात्त नायक को कामासक्त रूप में वर्णित करना उसके चरित में अपकर्ष का द्योतक है। क्योंकि वह नायक धीरोदात्तत्व गुण से समन्वित है। पुरुषों और सखियों द्वारा परस्पर एक दूसरे के समीप गुण का कथन करने रूपी मूलकथांश में परिवर्तन इसलिए किया गया है कि नाटकीय आख्यानवस्तु का विभाजन अङ्कों में होता है। अङ्क की अपनी मर्यादा है, जिसमें प्रारम्भ में अल्प पात्रों का ही वर्णन रहता है। मूल कथांश को ग्रहण करने से पात्रों की संख्या अधिक हो जाती, जो अङ्क-नियम की दृष्टि से दोष युक्त है। और हंस विषयक मूलकथांश को लम्बोदर नामक कापालिक द्वारा दमयन्ती की छाया प्रतिकृति के रूप में दर्शन को प्रस्तुत करने के पीछे अभिनय, मर्यादा की दृष्टि है। क्योंकि हंस विषयक कथांश श्रव्यकाव्य में तो वर्णन के लिए उपयुक्त है, पर अभिनय-मर्यादा की दृष्टि से वह सामाजिकों के लिए अस्वाभाविक है। इसलिए मूल कथा में दमयन्ती को नल से संयोग कराने के लिए हंस वृत्तान्त के स्थान पर विदर्भदेश की निवासिनी राजा नल की परिचारिका मकरिका के द्वारा नल से दमयन्ती का संयोग कराने की बात कही गई है। इससे सामाजिकों में उत्कण्ठा बढ़ती है कि अब यह मकरिका नल से दमयन्ती का संयोग किस प्रकार से करायेगी। दमयन्ती के स्वयंवर का वृत्तान्त नारदमुख से सुनकर उसे प्राप्त करने की इच्छा से अग्नि, वरुण, यम के साथ इन्द्र का विदर्भदेश प्रस्थान करना, मार्ग में स्वयंवर में जा रहे नल से उन देवों की भेंट होना, राजा नल को उन देवों द्वारा दूत बनाकर दमयन्ती के पास यह कहने के लिए भेजना कि वह हम चारों देवों में से किसी एक को पति रूप में वरण करे, नल द्वारा दौत्यकार्य सम्पादन करने की स्वीकारोक्ति, विदर्भ देश जाकर दमयन्ती से अग्नि, वरुण, यम तथा इन्द्र की इच्छा कहना, दमयन्ती द्वारा उन देवों की उपेक्षा करना तथा नल को ही अपना पति मानना, वहाँ से नल का देवों के पास आकर दमयन्ती का कथन सुनाना तथा दमयन्ती द्वारा स्वयंवर में आने के लिए चारों देवों को आमन्त्रित करने की बात, स्वयंवर में पाँच नल को देखकर दमयन्ती का भ्रमित हो जाना, पुनः देवों से प्रार्थना करने पर देवों की कृपा से दमयन्ती द्वारा उन्हें पहचानना, नल के गले में वरमाला डालना, अपने लोक को जा रहे इन्द्रादि देवों को मार्ग में आ रहे कलि और द्वापर का मिलना, इन्द्रादि देवों के मुख से दमयन्तीस्वयंवर समाप्ति का समाचार सुनकर दमयन्ती प्राप्ति का इच्छुक कलि का कुपित होना, क्रोधित होकर नल के राज्यादि का नाश करने की कलियुग द्वारा प्रतिज्ञा करना, अशुद्ध देखकर राजा नल के शरीर में प्रवेश करना, दूसरे रूप में पुष्कर के समीप जाकर नल से द्यूत-क्रीड़ा के लिए उत्साहित करना, द्यूत-क्रीड़ा में द्वापर की सहायता से राजा नल के राज्यादि को जीत लेना इत्यादि मूल कथाभाग को कवि द्वारा दूसरे रूप में इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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