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________________ भूमिका तत्पश्चात् राजा नल ने द्यूत-क्रीड़ा में पुष्कर को पराजित कर अपना नष्ट हुआ राज्यादि पुनः प्राप्त किया । तथा पुष्कर को बहुत धन आदि देकर निषधदेश से विदा कर दिया। ' इसके बाद जब सब नगर शान्त हो गया और वह उत्सव समाप्त हो गया, तो राजा नल ने बड़ी भारी सेना भेजकर दमयन्ती को वहीं बुला लिया। और सुखों का उपभोग करते हुए शासन किया | महाभारत में वर्णित इस कथा को आधार रूप में ग्रहण करके भी कवि ने नाटकीय आख्यानवस्तु की दृष्टि से स्थल विशेष में परिवर्तन किया है। क्योंकि नाटकीय आख्यानवस्तु का निबन्धन नाटकीय नियमों की दृष्टि से, सामाजिक मर्यादा की दृष्टि से तथा रस पेशलता की दृष्टि से तथा धीरोदात्तादि नायक के चरित्र की दृष्टि से किया जाता है। ये पाँचो ऐसे अनिवार्य तत्त्व हैं, जिसकी उपेक्षा करना किसी भी नाट्यकार के लिए सम्भव ही नहीं है। इसका कारण यह है कि श्रव्यकाव्य की तरह दृश्यकाव्य के वर्ण्य विषय की योजना में कवि स्वच्छन्द नहीं होता है। XXV नल-दमयन्ती विषयक मूल कथा में कवि द्वारा जिस-जिस स्थल विशेष में परिवर्तन किया गया है, वह स्थल विशेष इस प्रकार है— मूल कथा में वर्णित पुरुषों के द्वारा दमयन्ती के रूप सौन्दर्यादि का वर्णन नल के समीप करना, सखियों द्वारा न का गुणानुकीर्तन दमयन्ती के समीप करना, इससे दोनों का परस्पर अनुराग बढ़ना, नल का कामासक्त होकर रनिवास के समीप वाले उद्यान में जाना, वहाँ स्वर्ण पंखों वाले हंसों में से एक हंस को पकड़ना, हंस का दमयन्ती के समीप जाकर नल का गुणानुकीर्तन करना, नल से विवाह करने हेतु दमयन्ती की स्वीकारोक्ति लेकर पुनः नल के समीप आकर कहना इत्यादि मूलकथांश को परिवर्तित कर कवि ने उसे इस रूप में प्रस्तुत किया कि राजा नल अपने मित्रों के साथ उद्यान में गये थे। जहाँ परस्पर वार्तालाप के क्रम में लम्बोदर नामक कापालिक आता है। उससे परिचय के क्रम में लम्बोदर तथा विदूषक के बीच विवाद बढ़ जाने के कारण दोनों आपस में द्वन्द्व युद्ध के लिए तैयार हो जाते हैं। यह देख राजा नल अपने मित्र को युद्ध से विरत करने के लिए कहते हैं । उसी समय लम्बोदर नामक कापालिक की काँख से वस्त्र में लिपटी हुई दमयन्ती की छायाप्रतिकृति के गिरने से उसे खोलकर देखने पर उसके विषय राजा द्वारा विभिन्न प्रकार से विचार करने के प्रसङ्ग में मकरिका उस प्रतिकृति को देखकर नल को आश्वस्त करती है कि यह प्रतिकृति विदर्भनरेश भीम की पुत्री दमयन्ती की है। उक्त स्थल में कवि द्वारा मूलकथांश को परिवर्तित करके उक्त रूप में प्रस्तुत करने का कारण है कि 'नलविलास' नाटक में राजा नल धीरोदात्त नायक के रूप में १. महाभारत, वनपर्व, ७८/१-२९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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