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नलविलासे
नगरी से लौटकर मुझसे कहा। तत्पश्चात् मैंने ही सुदेव ब्राह्मण श्रेष्ठ को अयोध्या नरेश के पास जाने के लिए कहा तथा उससे यह भी कहा कि आप अयोध्यानरेश से कहेंगे कि कल सूर्योदय होते ही दमयन्ती दूसरा पति वरण कर लेगी अतः कल सूर्योदय होने से पूर्व आप विदर्भदेश पहुँचें। क्योंकि हे राजन्! मैं जानती हूँ कि इस पृथिवी पर आपके सिवा ऐसा कोई दूसरा नहीं है, जो एक दिन में सौ योजन की दूरी तय कर सके। हे नाथ! मैं आपके इन चरणों को छूकर कहती हूँ कि मैंने मन से भी कुछ पाप नहीं किया है। किन्तु, यदि मैंने पाप किया है, तो निरन्तर चलने वाला यह वायु सूर्य और चन्द्रमा, जो सबके मन में साक्षी के रूप में विचरता है, मेरे प्राण का नाश करे । दमयन्ती के इतना कहते ही आकाश में स्थित वायुदेव ने कहा- हे राजन् ! दमयन्ती ने कुछ पाप नहीं किया है साथ ही इसके तीन वर्ष से हमलोग रक्षक और साक्षी हैं। दमयन्ती ने उक्त उपाय का सहारा आपको प्राप्त करने के निमित्त किया था। इतना कहते ही आकाश से फूल बरसने लगे, देवों ने नगाड़े बजाये और उत्तम पवन चलने लगा। '
यह देख नल ने शङ्का का त्याग करके कर्कोटक नाग द्वारा प्रदत्त उस पवित्र वस्त्र को ओढ़कर कर्कोटक नाग का स्मरण किया। जिससे उन्हें तत्क्षण अपने वास्तविक रूप की प्राप्ति हुई । नल और दमयन्ती आपस में मिल गये और परमानन्द को प्राप्त किया। इसके बाद यह वृत्तान्त दमयन्ती की माता ने भीमनरेश को कह सुनाया। तब राजा भीम ने कहा कि मैं कल सबेरे दमयन्ती के सहित सुख से बैठे हुए नल को देखूँगा । तदनन्तर नल और दमयन्ती ने बहुत आनन्द से उस रात को वन की पुरानी कथायें कहते-कहते बिताया। इस चौथे वर्ष में अपनी स्त्री को पाकर राजा नल परम आनन्द को प्राप्त किए तथा दमयन्ती भी अपने पति नल को प्राप्त कर अत्यन्त शोभित हुई ।
तत्पश्चात् उस रात्रि को बिताकर नल ने राजा भीम के दर्शन किये। उस दिन नगर में चारों ओर महा आनन्द के शब्द होने लगे। लोगों ने हर्षोल्लास मनाया। जब राजा ऋतुपर्ण ने यह सुना कि बाहुक रूप में वे राजा नल ही हैं तो तुरन्त नल के पास पहुँचकर क्षमा याचना करने लगे। यह देख राजा नल ने उन्हें धैर्य बँधाया और बोले हे राजन्! आपने मेरा बहुत ही उपकार किया है। अतः मुझसे क्षमा माँगकर मुझे लज्जित न करें । ३
इस प्रकार से कुण्डिनपुरी में एक महीना रहने के बाद राजा नल सेनासहित अपने देश जा पहुँचे और अपने भाई पुष्कर से जुआ खेलने का आग्रह करने लगे।
१. महाभारत, वनपर्व ७६ / १-१५ २. महाभारत, वनपर्व ७६/१६-२७। ३. महाभारत, वनपर्व, ७७ / १ - १९ ।
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