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नलविलासे आपको प्रणाम करने ही यहाँ आया हूँ। यह सुनकर राजा भीम ने ऋतुपर्ण से विश्राम करने के लिए कहा तथा सत्कार करके उन्हें विदा किया। जब राजा ऋतुपर्ण विश्राम के लिए चले गये तब रथ पर से वाष्र्णेय के साथ बाहुक भी उतर कर अश्वों की सेवा करके उन्हें प्रसन्न करने लगे और रथ के समीप अश्वशाला में बैठ गये। तत्पश्चात् दमयन्ती ने अनेक तर्क-वितर्क करके नल को ढूंढने के लिए एक दूती भेजना चाहा।
इसके बाद दमयन्ती ने केशिनी को बुलाकर कहा तुम उस बाहुक नामक सारथि के समीप जाओ और इसका पूरा-पूरा ज्ञान प्राप्त करो कि वह इस रूप में कौन है। साथ ही मेरी बातों को पर्णाद नामक ब्राह्मण के मुख से उस बाहुक ने जो सुनकर उसका उत्तर दिया था उन बातों को पुन: कहकर उस बाहुक से कहना कि आप द्वारा दिये गये उत्तर को पुन: दमयन्ती आपके मुख से सुनना चाहती है। अत: आप उस वाक्य का उत्तर उसी रूप में दें जिस प्रकार आपने पर्णाद को दिया था। तथा हे केशिनि! भोजन बनाने के निमित्त उसके द्वारा अग्नि और जल मांगने पर भी तुम उसे मत देना। साथ ही देखना कि वह बाहुक अग्नि और जल की व्यवस्था किस प्रकार करता है। यह सब देखकर इसकी सूचना तुम मुझे यथाशीघ्र दो क्योंकि मुझे विश्वास हो रहा है कि बाहुक रूप में वे मेरे स्वामी नल ही हैं। अतः तुम यहाँ से यथाशीघ्र बाहुक के समीप चली जाओ। तत्पश्चात् दमयन्ती का आदेश पाकर वह केशिनी बाहुक के समीप जाकर दमयन्ती द्वारा कही बातों को उससे कहती थी और उस बाहुक के द्वारा दिये गये उत्तर को ध्यान से सुनती थी। उसी समय भोजन बनाने के निमित्त जो सामग्री एवं पशुओं के मांस राजा भीम ने भेजे थे उन्हें धोने के लिए खाली घड़े में ज्यों ही राजा नल ने देखा उसमें पानी भर गया तथा उस पानी से मांसादि को धोकर कुछ घासों को हाथ से रगड़कर अग्नि प्रज्वलित कर पाकक्रिया प्रारम्भ कर दिया। यह सब देखकर केशिनी आश्चचर्यचकित होती हुई दमयन्ती के पास गई और राजा नल द्वारा दिये गये दमयन्ती के वाक्यों का उत्तर तथा अग्नि और जल विषयक घटना कही। इसे सुनकर दमयन्ती ने यह निश्चय कर लिया के अब नल ही बाहक रूप में यहाँ आ गये हैं। अत: दमयन्ती ने कहा- हे केशिनि! तू पुन: वहाँ जाकर और बाहुक ने जो मांस बनाया है, उसमें से जो कुछ चौके के बाहर गिरा हो उसे ले आओ। तत्पश्चात् केशिनी पुन: वहाँ गई और मांस का एक टुकड़ा लाकर दमयन्ती को दिया जिसे खाकर दमयन्ती यह समझ गई कि ये राजा नल ही हैं, कोई अन्य नहीं। पुन: यह नल ही हैं अन्य नहीं इसका एकान्तिक निर्धारण करने के निमित्त दमयन्ती ने केशिनी के साथ अपने पुत्र इन्द्रसेन तथा पुत्री इन्द्रसेना को बाहुक के पास भेज दिया। अपने पुत्र और पुत्री को देखकर बाहुक दौड़कर गया और उन दोनों को अपने गले से लगाकर गोद १. महाभारत, वनपर्व ७५/१-३०।
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