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________________ भूमिका xix छली! तुम मेरे आधे वस्त्र को फाड़कर प्यारी और सदा पीछे चलने वाली मुझे वन में सोती हुई छोड़कर कहाँ चले गये? तुमने जैसी उसको आज्ञा दी थी वह बाला वैसे ही आधा वस्त्र पहने हुए अत्यन्त दु:ख से जलती हुई अभी तक वैसी ही तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है। उस शोक के कारण हमेशा रोती हुई उस स्त्री पर कृपा करो और उसके वचन का उत्तर दो। तथा यह भी कहना चाहिए कि पति का कर्तव्य है कि वह सदा ही अपनी पत्नी की रक्षा और उसका पालन पोषण करे। पर आपकी ये दोनों बातें किसलिए नष्ट हो रही हैं। ऐसा कहने पर जो कोई व्यक्ति इसका उत्तर दे उसके विषय में सम्यक् जानकारी प्राप्त करके हमें सूचना दे--- ग्रहण करके ब्राह्मण लोग विभिन्न दिशाओं में नल का अन्वेषण करने के लिए चल दिये। तथा दमयन्ती के उक्त वचन को जहाँ-तहाँ सुनाने लगे। __ इस प्रकार बहुत काल व्यतीत हो जाने के बाद अयोध्या नगरी र लौटकर आए हुए पर्णाद नामक ब्राह्मण ने दमयन्ती के कथनानुसार वाक्यों को कहने पर राजा ऋतुपर्ण के नौकर बाहुक से इस प्रकार का उत्तर- उत्तमकुल में उत्पन्न हुई जो स्त्रियाँ अत्यन्त विषम दुःख को पाने पर भी स्वयं अपनी रक्षा करती हैं और पतियों से विछड़ जाने पर भी क्रोधित नहीं होती; वे ही स्वर्ग को जीतती हैं। उस मूर्ख पति ने सुखों से भ्रष्ट होकर और संकट में पड़ने के कारण दुःखी होकर जो उसको छोड़ दिया; इस कारण उसको क्रोध करना तथा भोजन को चाहने वाले उसके वस्त्र को जब पक्षी लेकर उड़ गये और वह मानसिक चिन्ताओं से जलने लगा और चाहे वह सत्कार को पाती हो या नहीं, तो भी राज्य से भ्रष्ट, लक्ष्मी से हीन अपने पति को आया हुआ देखकर उस निर्दोषी पर क्रोध करना उचित नहीं हैं- कह सुनाया। पर्णाद के मुख से इस प्रकार सुनकर रोती हुई दमयन्ती माता के पास पहुँची और उनसे बोली कि हे माता! मुझे राजा नल का पता लगाने के लिए सुदेव को अयोध्या भेजने की अनुमति दें तथा यह बात पिता जी से न कहें। यह कहकर दमयन्ती ने पर्णाद नामक ब्राह्मण को दानदक्षिणा देकर सुदेव नामक ब्राह्मण को बुलाया और उससे बोली कि हे द्विजश्रेष्ठ! आपने ही मुझे अपनों से मिलाया है। अत: आप मेरा एक प्रिय कार्य और करें जिससे मैं अपने पति से शीघ्र मिल जाऊँ। इसलिए आप आज ही किसी प्रकार से अयोध्या पहुँचें और महाराज ऋतुपर्ण से यह कहें कि- हे राजन्! विदर्भनरेश की पुत्री दमयन्ती अपने लिए दूसरा पति वरना चाहती है, क्योंकि वीर नल अभी तक जीवित हैं या नहीं इसका पता नहीं है। अत: दूसरे पति का वरण करने के लिए वह दमयन्ती कल ही अपना स्वयंवर रचायेगी, जिसमें सब राजा और राजपुत्र आ रहे हैं। अत: यदि आपके लिए संभव हो तो किसी प्रकार आप आज ही विदर्भदेश पहुँचे, क्योंकि कल १. महाभारत, वनपर्व ६९/१-२२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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