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________________ xviii नलविलासे धुओं से रहित होकर भी केवल पति के दर्शन की इच्छा से अपने जीवन को धारण कर रही है। अतः विपत्ति में पड़ी दमयन्ती को धैर्य दिलाने का मुझे प्रयत्न करना चाहिए, ऐसा विचारकर वह सुदेव दमयन्ती के समीप गया और बोला कि हे देवि ! मैं तुम्हारे भाई का प्यारा मित्र सुदेव नामक ब्राह्मण हूँ तथा महाराज भीम की आज्ञा से तुम दोनों का अन्वेषण करता हुआ यहाँ पहुँचा हूँ। यह जानकर दमयन्ती ने सुदेव को पहचानकर क्रम से अपने सब बन्धुओं का समाचार पूछा तथा अचानक आत्मीयजन सुदेव को देखकर वह दमयन्ती बहुत रोई । यह देखकर सुनन्दा ने अपनी माता के पास उसके रोने का सन्देश भेजा जिसे सुनकर चेदिराजा की माता रनिवास से निकलकर उस स्थान पर पहुँची जहाँ दमयन्ती और ब्राह्मण का वार्तालाप हो रहा था। तथा सुदेव से सैरन्ध्री (दमयन्ती) के विषय में पूछा कि यह कौन है ? किस कारण यह विपत्ति में पड़ी है ? हे ब्राह्मण श्रेष्ठ! आप इस वृत्तान्त को मुझसे कहें। तत्पश्चात् उस ब्राह्मण ने यह कहते हुए, कि यह निषधनरेश राजा नल की स्त्री, विदर्भपति भीम की पुत्री, दमयन्ती है । पूर्वघटित सारा वृत्तान्त राजमाता से कह सुनाया। और दमयन्ती तथा नल का अन्वेषण करता हुआ मैं जन्म से ही भौहों के मध्य में विद्यमान तिल जो शरीरमैल से छिप गया है उसे देखकर इसे पहचान लिया। यह सुनकर सुनन्दा ने जब तिल के स्थान वाले भाग से मैल को हटाया तो मेघरहित आकाश में चन्द्रमा की भाँति मुखवाली दमयन्ती को पहचान कर राजमाता यह कहकर कि तुम तो मेरी बहन की पुत्री हो, क्योंकि मैं और तुम्हारी माता दशार्णदेश के राजा सुदामा की पुत्री हैं, बहुत देर तक रोती रहीं। तत्पश्चात् राजमाता ने कहा हे पुत्र ! यह तो अब तुम्हारा ही घर हैं, अतः मेरे इस ऐश्वर्य को अपना ही ऐश्वर्य समझो। अपने मौसी की उक्त वाणी को सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुई दमयन्ती ने मौसी को प्रणाम किया तथा सुदेव के साथ अपने पितृगृह जाने की अनुमित मांगी। यह सुनते ही प्रसन्न होकर राजमाता ने अपने पुत्र की आज्ञा से विशाल सेना से रक्षित पालकी में दमयन्ती को विदर्भदेश भेज दिया। वहाँ से चलकर कुछ दिनों के पश्चात् दमयन्ती विदर्भदेश पहुँच गई, जहाँ उसके आत्मीयजनों ने उसका अत्यधिक सम्मान किया। अपने दोनों बालक, माता-पिता और सब सखी वर्ग को सुखी देखकर दमयन्ती ने अत्युत्तम विधि से देवता और ब्राह्मणों की पूजा की तथा माता से बोली हे माता ! यदि तुम मुझे जीवित देखना चाहती हो तो महाराज नल का अन्वेषण करवाओ, क्योंकि उनके बिना मैं जीवित नहीं रह सकती। यह सुनकर दमयन्ती की माता रोने लगी और रोती हुई अपने पति भीमनरेश से दमयन्ती का वृत्तान्त कह सुनाया। तत्पश्चात् राजा भीम की आज्ञा से तथा दमयन्ती द्वारा कहे गये इस वाक्य को - हे १. महाभारत, २. महाभारत, Jain Education International वनपर्व ६८/१-३८। वनपर्व ६९/१-२६। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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