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________________ नलविलासे दमयन्ती - (१) मह निमित्तं घोरघोणेन ईदिसमवत्थं णं अज्जउत्तो लंभिदो । ता अहं अज्जउत्तस्स अवराहिणी, न उणो मह अज्जउत्तो । कलहंस:- साधु देवि ! साधु पतिव्रतानामेष एव वाग्विभवः । देवोऽपि देवीमपहाय किमनुभूतवान् ? १९२ नल:- देवीमपहाय क्रमेणाहम् 'एहि महापुरुष ! त्रायस्व माम्' इति प्रतिमुहुर्व्याहरन्तं दवानलज्वालाजटालवपुषमेकमाशीविषमद्राक्षम् । सर्वे - (सकौतुकम् ) ततस्ततः । नलः -- ततः स दवानलाकृष्टो मां दष्ट्वा विकृतरूपं कृतवान् । देवतारूपं च विधाय 'सोऽहं तव पिता महाराजनिषधस्त्वत्कृपया समागतवान्' इति व्याहरत् । दमयन्ती - (२) तदो दमयन्ती- मेरे कारण घोरघोण के द्वारा आर्यपुत्र ने इस अवस्था को प्राप्त किया है। कलहंस - साधु देवि ! साधु, पतिव्रताओं की वाणी का यही धन है। महाराज ने भी देवी को छोड़कर क्या अनुभव किया ? नल- देवी को छोड़कर मैं धीरे से 'पुरुषश्रेष्ठ! आओ, मेरी रक्षा करों । ऐसा प्रत्येक क्षण बुलाने वाले दावाग्नि की ज्वाला में जटाजूटधारी शरीरवाले एक सर्प को देखा । उसके बाद | सभी - ( कौतूहल के साथ) उसके बाद, नल- पश्चात् दावानल से निकाला गया वह सर्प मुझे काटकर विकृतरूप वाला बना दिया। देवरूप को धारण करके 'मैं तुम्हारा पिता महाराज निषध हूँ और तुम्हारी कृपा से (यहाँ आया हूँ' ऐसा कहा । दमयन्ती - उसके बाद । (१) मम निमित्तं घोरघोणेन ईदृशीमवस्थां नन्वार्यपुत्रो लम्भितः । तदहमार्यपुत्रस्यापराधिनी, न पुनर्ममार्यपुत्रः । (२) ततः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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