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________________ १९३ सप्तमोऽङ्कः नल:- ‘मा भैषीरतः परं द्वादशसु वर्षेषु पुनः प्रियादर्शनं ते भविष्यति' इत्यभिधाय तावत् तिरोऽभूत्। ततोऽहं क्रमेण सूपकारवृत्त्या दधिपर्णाभ्यणे स्थितवान्। (नेपथ्ये) प्रवर्त्यन्तां मङ्गलानि, प्रसाध्यन्तां मौक्तिकस्वस्तिकैः प्राङ्गणभुवः, प्रवर्त्यन्तां सङ्गीतकानि। ननुमनोरथानामप्यभूमिर्वत्सायाः प्रिया प्रियप्राप्तिरभूत्। कलहंस:- (ससम्भ्रमम्) कथं विदर्भाधिपतिरितोऽभ्येति? (ततः प्रविशति पुष्पवत्या सह राजा भीमरथः। सर्वे ससम्भ्रममुत्थाय प्रणमन्ति) राजा- (नलं प्रति) 'यो दमयन्तीं परिणेष्यति तस्याहं राज्यभ्रंशं करिष्यामि' इति स्वप्रतिज्ञा घोरघोणेन समर्थिता। घोरघोणः पुनः किल कलचुरिपतेर्दमयन्तीपरिणयनमभिलाषुकस्य चित्रसेनस्य मेषमुखनामा प्रणिधिः। अयमपिघोरघोणशिष्यो लम्बोदरश्चित्रसेनस्यैव कोष्ठकाभिधानश्चर एव। नल- 'बारह वर्ष के बाद पुन: तुम्हें अपनी प्रिया का दर्शन होगा अत: डरो नहीं'। पश्चात् मैं धीरे-धीरे रसोइये का कार्य करता हुआ दधिपर्ण के घर में रहने लगा। (नेपथ्य में) मङ्गल ध्वनि करें, मौक्तिक मणि द्वारा स्वस्तिक चिह्न से आङ्गन की भूमि को सजाइये संगीत प्रारम्भ करें, मेरी आशाओंसे बढ़कर भी मनोरथ स्वरूप प्रिय की प्राप्ति प्राण प्यारी पुत्री दमयन्ती को हो गयी। ___ कलहंस- (वेगपूर्वक) तो क्या विदर्भ देश के स्वामी भीमरथ इधर आ रहे हैं? (पश्चात् पुष्पवती के साथ भीमरथ प्रवेश करता है। सभी शीघ्रता से उठकर प्रणाम - करते हैं) राजा- (नल के प्रति) 'जो दमयन्ती से विवाह करेगा मैं उसका राज्य नाश कर दूँगा', इस प्रकार की अपनी प्रतिज्ञा को घोरघोण ने पूरा किया। पुनः घोरघोण कलचुरिपति के साथ दमयन्ती के विवाह की इच्छा वाला चित्रसेन का मेषमुख नामक गुप्तचर है। घोरघोण का शिष्य यह लम्बोदर भी चित्रसेन का ही कोष्ठक नामक दूत है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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