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________________ सप्तमोऽङ्कः १९१ नल:- ततस्ततः। दमयन्ती-(१) तदो कमेण इध समागदाए मए सुणिदं जधा'दधिवनस्स सूवगारो सुरियवागं करेदि।' तदो मए चिंतियं 'अज्जउत्तं विणा न अन्नो सूरियवागविज्जं जाणादि।' अणंतरं अज्जउत्तपरिक्खणत्यं नाडयं काऊण कलहंसखरमुह-मयरियाओ पेसिदाओ। नल:- कलहंस! कथय कथं त्वमत्रायातोऽसि? कलहंस:- देवीमेकाकिनी विदर्भेषु समागतामाकर्ण्य खरमुखमकरिकाभ्यां सहाहमिहायातोऽस्मि। दमयन्ती--(२) पच्छा अज्जउत्तस्स इहागमणत्थं अलियं सयंवरपवाद कडुय पुरिसो पएसिदो। नल:- देवि! क्षमस्व मया निर्निमित्तमपाकृतासि। नल- उसके बाद, उसके बाद। दमयन्ती- पश्चात् यहाँ आई हुई मैंने धीरे-धीरे जैसा कि 'दधिपर्ण का रसोइया सूर्य कि किरणों से भोजन बनाता है' सुना तब मैंने विचार किया 'आर्यपुत्र के सिवा दूसरा सूर्यपाकविधि नहीं जानता है'। इसके बाद आर्यपुत्र की परीक्षा लेने के लिए नाटक करके कलहंस, खरमुख और मकरिका भेजी गई। नल- कलहंस! कहो, तुम यहाँ कैसे आये हो? कलहंस- अकेली देवी का विदर्भदेश में आगमन सुनकर खरमुख और मकरिका के साथ यहाँ आया हूँ। दमयन्ती- पश्चात् आर्यपुत्र को यहाँ आने के लिए स्वयंवर का मिथ्या प्रचार करके पुरुष को भेजा। नल- देवि! क्षमा करो, मेरे द्वारा तुम बिना किसी कारण के छोड़ी गई हो। (१) ततः क्रमेणात्र समागतया मया श्रुतं यथा-- 'दधिपर्णस्य सूपकार: सूर्यपाकं करोति'। ततो मया चिन्तितम् ‘आर्यपुत्रं विना नान्यः सूर्यपाकविद्यां जानाति' । अनन्तरमार्यपुत्रपरीक्षणार्थं नाटकं कृत्वा कलहंस-खरमुख-मकरिकाः प्रेषिताः। (२) पश्चादार्यपुत्रस्येहागमनार्थमलीकं स्वयंवरप्रवादं कृत्वा पुरुष: प्रेषितः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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